सुनहरी उम्मीद
फिजियो थेरेपी सेंटर के अल्ट्रासोनिक मशीन पर लेटे मैं अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। डॉ0तिवारी पूरी तन्मयता से मरीजों का एक एक कर निदान बता रहे थे, किसी को एक्सरसाइज बता रहे थे, किसी को मशीनी कसरत समझा रहे थे। अचानक परिचारिका जानकी बिलखते हुए आ कर बोली –
” तिवारी भैया हमरे बीटियवा क जान बचा ला ”
” क्या हो गया दीदी – इतना घबरायी क्यों है ? ” , तिवारी जी मशीन पर हमें लिटाते हुए बोले।
” भैया हमारे बिटिया के पेट में बहुत तेज दर्द कल राते से रहिल , एही पाछे ओका इमरजेंसी में लियावा रहे , वहाँ के डाक्टर बोलेन की एका तुरंत अल्ट्रासाउंड करावे के, भागे भागे जब रेडियोलोजी में गइली तो वहाँ डेट बीस दिन बाद का मिला, तब तक त बीटियवा हमार मर जाई , कैसे का करी, कुछ बुझत नइखे। कुछ करा भैया ” एक आशा के साथ वह गुहार कि मुद्रा में बोली।
अल्ट्रासोनिक मशीन पर लेटे हुई पूरी बात मै सुन रहा था और अचानक मै जोर से हंस पड़ा। आस पास के लोग घबरा गये कि मुझे यह क्या हो गया , सहानुभूति के बजाय हंसी का रहस्य लोगो के लिए अबूझ रहा।
लोगो के संशय का समन करने की बारी अब मेरी थी।
मै पुनः हंसा – बोला कि देखिये आप सब इस सच्चाई को , इक्कीसवी से बीसवीं सदी में हम गाल फुलाते हुए चलते चले जा रहे। अब आप देखे न दीदी कि बात ऐसी तो है नहीं की किसी को समझ में न आये। फिर व्यवस्था को क्यों नहीं समझ आता। स्वास्थ्य ,शिक्षा और रोजगार जो लोकतंत्र के तीनो मजबूत स्तम्भ है , और संविधान इसे हमारी मूलभूत आवश्यकता व आधार मानता है पर इतने दिनों के बाद भी आज तीनो अबूझ बने है , पक्ष प्रतिपक्ष एक दूसरे पर बस आरोप ही लगाते है, उनके झंडे को कमोवेश हम सब ढोते हुए वस्तुस्थिति से वाकिफ है फिर भी लाचार है। ऐसी व्यवस्था से सब भिज्ञ थे पर कुछ न कर पाने की विवशता सोच सबके चेहरे पर हंसी या हंसी सा कुछ लक्षित हो रहा था।
तिवारी जी ने सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा –
” सर बात तो सही है, पर इस कमी को कुछ हद तक हम आपसी सहयोग से दूर कर सकते है।”
“मतलब ”
” मैं सोच रहा था कि इन्हें बाहर में मेरे परिचित डियग्नोस्टिक वाले है वही भेज देता हूँ, तुरंत बच्ची के पेट का अल्ट्रासाउंड करवा देते है , बेचारी का निदान होकर उसकी जान बच जाएगी”
विकल्पहीन मेरे पास मौन स्वीकृत के अलावा कोई और चारा नहीं था।
” फिर भी तो मरीज को वहाँ लाना ले जाना , फजीहत का काम है, और पैसा अलग से देना ही पड़ेगा, भले ही कम हो, आखिर इसका मेडिकल का पैसा भी तो कटता है, मैंने एक उदास फीकी हंसी को दबाते हुए कहा।
” पर सर हम सबकी प्राथमिकता किसी की जान बचानी है और होनी चाहिए ”
मुझे लगा काश डॉ0 तिवारी की तरह सभी व्यवस्थापरक लोग संवेदनशील होते, तो एक एक कर ग्यारह की उपलब्धि देर सबेर हो ही जाती।
इसी बीच अल्ट्रासोनिक मशीन का अलार्म बज चुका था, डॉ0 तिवारी किसी को फोन लगा रहे थे, जानकी बड़े ही उम्मीद से कि अब उसके बच्ची की जान बच जाएगी, बड़े ही कृतज्ञता से उन्हें निहार रही थी।
मैं अब अपनी कोई उपयोगिता न देखते हुए अपनी राह चलने लगा, मन व्यस्था से जहाँ खिन्न लगा, वही डॉ0 तिवारी की तन्मयता, लगन व सकारात्मक अप्रोच के प्रति आभार व्यक्त करना चाह रहा था। लगा इनके जैसे ही लोगो पर हमारी सुनहरी उम्मीद खड़ी है और वही हमारे मुस्कुराने की वजह है, शेष सब व्यर्थ है।
निर्मेष