सुनलो कृपा निधान
काम गया रोटी रुठी , आफत में है जान ।
बिन ब्याही सुता बैठी ,सुनलो कृपा निधान।।
दुःखो के कूप गहरे , दूजे लगे पहरे ।
झांके नहिं अन्धे बहरे, आए दिवस सुनहरे।।
दीन की रोजी छूटी , मन का खोया चैन ।
जोरु कहें क़िस्मत फूटी, कहा कटे दिन रैन।।
निज शाला के मास्साब ,हुए सबै बेकार ।
मिलती नहीं है पगार , बच्चें रोए बेजार ।।
पगडंडी पूछें पथिक , कहां जाएगा यार ।
गांव की आधी तज , जाना है बेकार ।।
—————————————————-
रचनाकार- शेख जाफर खान