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4 Feb 2021 · 1 min read

सुदामा-द्वारिका आगमन

एक हाथ लकुटिया, दूजे हाथ पोटरिया, सुदामा निज सखा से मिलने द्वारका जाते हैं।
चलते हैं
बढ़ते है,
थकते हैं,,
रुकते हैं,
गिरने के बाद फिर खड़े हो जाते हैं।।
चलते हैं
चुभते हैं
कंटक – कटीले जैसे,
हँसत सुदामा ऐसे सब कष्ट भूल जाते हैं।
मिलता जो केहरी तो,
केशव समझ लेते उसको,
श्रीदामा साथ हरष के गले से लगातें है।।
धूप-घाम सहते हैं,
कृष्णा- कृष्णा कहते हैं,
कृष्ण माला जपकर रात्रि खण्डहरों में बिताते हैं।
होती जो प्रभात,
तब करते वंदना मनोहर की,
कृष्ण कृष्ण कह पग आगे बढ़ाते है।।
कैसी है नगरि हरि की,
कहाँ है ये स्थित?
ज्ञात नहीं कुछ भी, पर निरंतर चलते
जाते हैं।
जाते हैं समुद्र – मध्य,
देखते मनभावन द्वीप,
कृष्ण -कृपा से श्याम – सखा द्वारकापुरी पहुँच जाते हैं।
———-भविष्य त्रिपाठी

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Comment · 346 Views
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