सुग्रीव का विरोध- गुरू सक्सेना
सुग्रीव का विरोध
कुण्डलिया छंद
चलते चलते चहकते,चिल्लाते कर जोर।
गगन लोक तक गूँजता,पंपापुर का शोर।
पंपापुर का शोर, मगर कुछ दल के अंदर ।
सुन नायक का नाम, नहीं सहमत थे बंदर।।
राजा के आदेश हो रहे खलते खलते।
फिर से निर्णय करो कह रहे चलते चलते ।।
2
अभी हमारे बीच हैं, बूढ़े चतुर सुजान।
योग्य नहीं है किस तरह जामवंत हनुमान।।
जामवंत हनुमान,न राजा अपनी हद में।
क्या विशेषता दिखी,नये बालक अंगद में ।।
रहें उपेक्षित योग्य,सिर्फ रिश्ता पद धारे।
परिवारवाद भरा,नृप हृदय अभी हमारे।।
3
नहीं योग्यता की कदर होती जिस दरबार।
उस राजा की न चले,अधिक दिनों सरकार ।।
अधिक दोनों सरकार, न चुप बैठें प्रतिभाएँ।
करें संगठन खड़ा,सभी में छबी बनायें।।
हृदय सरोवर खिलें,खुशी के कमल जो कहीँ।
राम नाम का मंत्र भूलते कभी वो नहीं।
4
राम कृपा से ही बने,राजा अभी सुकंठ।
डूबे रहे विलास में,चार माह आकंठ।
चार माह आकंठ,हुए हनुमान सहाई।
तभी बचे हैं प्राण अभी सीता सुधि आई।
फिर भी तो परिवार,वाद के हैं अभिलाषे।
कब तक लेंगे और,निर्णय भी राम कृपा से ।।
कृमशः राम कथा
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
17/11/2020