सुगंध
दोहा मुक्तक छंद
प्रदत शब्द – सुगंध
मधुकर धीरे से गया ,नव कलियन के पास।
पाकर प्रेम सुगंध को ,कर बैठा परिहास।।
मधुर लगा परिहास तो, नैन हो गए चार।
नैन मिलाने रूपसी, आई मधुकर पास।।
हर्ष उठा दिल का कमल,हुई सुगंधित रात।
आंचल भरता प्रेम से,बरस सुधा बरसात।।
चंन्द्र – चंद्रिका दे रहे, शुभ-शुभ आशीर्वाद ।
जीवन नित फलता रहे, जैसे तरुवर पात।।
सुगंध पुष्पों की रहे,स्वर्ण सुवासित भोर।
कली-कली दिल की खिले, हर्षित नैना कोर।।
अलि-कली झूम-झूम के, गाए निस दिन राग ।
घूंघट पट तज के कली, चली पिया की ओर।।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश