सुगंधा की बकरी …2
नीलेश प्रसाद लेते हुए बोला “ला खा लेता हूं तू प्रसाद समझ कर दे मैं मीठा समझ कर खा लूंगा..
सुगंधा खुश हो गई … और मुस्कुराते हुए रसोई की ओर जाते हुए गाना गुनगुनाने लगी “हे रे कन्हैया किस को कहेगा तू मईया …
थोड़ी ही देर में सुगंधा लौट आई, एक हाथ में पानी का लोटा दूसरे में गुजिया और पोरो का साग लिए। वो जानती थी नीलेश उसके हाथ से बना पोरो साग बहुत चाव से खाता है।
नीलेश के सामने पैर मोर कर बैठते हुए, कहा ल्ला इस बार तू बहुत दिन पे आया… थोड़ा जल्दी जल्दी आया कर
… नीलेश आजी बात बदलने कि न सोच बता क्या बात थी ?
… कुछ नहीं रे … तू फिर मुझे ही सुनाएगा जाने दे छोड़ … फिर मानो उसे कुछ याद हो आया हो, कहा …
मुझे समझ नहीं आता ये लोग जीव हत्या कैसे करते हैं ? क्यूं जानवरों को मार कर खाते हैं… पापी, नीच, किसी जानवर को नहीं छोड़ते जब की खाने के लिए इतने तरह के साग सब्जी हैं… धरम न बचने देंगे ये लोग …
नीलेश बोला किस पे इतनी आग बबूला है तू …?
किस किस की बात कहूं सभी तो खाते हैं … पूरा मुलला मुहल्ला हो गया है … जिधर से गुजर जाओ एक आध हड्डी मिल ही जाएगी … मैं कहती तो हूं उन मूल्लाओं से उनकी बस्ती खाली कराओ मगर मेरी सुनता कौन है … वो लोग चले जाएंगे अपने लोग भी सुधर जाएंगे। गुस्से में तमतमाई सुगंधा बिना रुके बोले जा रही थी … अभी सतसंग हुआ था गुरुजी आए थे उन्होंने सब को सख्ती से मना किया था… उन्होंने कहा था सबसे बड़ा पाप है “जीव हत्या” लेकिन लोग तो एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देते हैं…
नीलेश सुगंधा का ये रूप देख अंदर तक कांप गया। वो सोचने लगा कोई कम अक्ल आजी की बातों में आ गया तो अनर्थ हो जाएगा… आज कल तो जहां तहां इस तरह की बरदात सुनाई पड़ रही है… तभी बाहर से आवाज़ आई … “आजी” सुगंधा को सभी आजी ही बोलते थे…
सुगंधा … आवाज़ को पहचानते हुए बोली “अरे रज्जाक बाहर ही बैठो आ रही हूं … नीलेश ने पूछा कौन है आजी…
कोई नहीं रे वो “रज्जाक मियां” है बकरी लेने आया है। आती हूं थोड़ी देर से… कहते हुए वो निकल गई बिना देखे कि नीलेश भी उसके पीछे-पीछे था।
रज्जाक विनम्रता से बोला “अजी बकरी दिखा दो… दाम वाम का भी बात हो जाय…
चलो आओ मेरे पीछे पीछे… बकरी के पास पहुंच सुगंधा, प्रेम भरी नजरों से बकरी को देख रही थी और बोली यही है मियां … बड़े प्यार से पाला है इसे… बिल्कुल अपने बच्चे की तरह। ले जाओ जो देना हो दे जाना …
रज्जाक बकरी का गर्दन नापते हुए बोला अजी 3000 बनता है…
सुगंधा बोली नहीं – नहीं 3000 में कैसे होगा 5000 तो कम से कम दो…
अच्छा चलो 5 नहीं तो कमसे कम 4:30 तो बनता ही है। इतने सालों से इतने जतन से पाला है। देखो अभी भी पाठी ही दिखती है … अच्छा चलो …
ना तुम्हारी ना मेरी 4:30 में नक्की करते हैं।
रजजाक भी थोड़ा नानुकुर करके मान गया और बकरी खोल धीरे-धीरे कदमों से जाने लगा ।
बकरी सुगंधा के आंचल को मुंह से पकड़ उसे भी खींचने लगी।
सुगंधा नम आंखों से उसे देखती रही और छुड़ाते हुए कहा … जा तेरा इस घर से दाना पानी उठ गया और जोर लगा कर अपना आंचल छुड़ा पीछे मुड़ी जाने को तो देखा नीलेश खड़ा है।
सुगंधा रोते हुए बोली “लला तू भी यहीं था, देख न वो भी चली गई। बकरी और औरत में कोई फर्क नहीं पालता कोई है ले कोई और जाता है।
नीलेश … चुप चाप सुन रहा था अचानक बोल उठा “प्राकृतिक आहार चक्र को अगर पढ़ा होता तो आज जिस मानसिक अवसाद से गुजर रही हो न गुजरती। तुमने सोचा आजी जिस बकरी को तुमने बच्चे की तरह पाला इसी ने तुम्हें इतने सारे और बकरी बकरा तुम्हे दिया इसे तुमने क्यूं बेचा? बिकने के बाद इसका क्या होगा? जिस बात को लेकर तुम सुबह से इतनी परेशान हो उसका एक सिरा तुम्हारे हाथ में भी है। गाय पालती हो जब वो बूढ़ी हो जाय तो बेच देती हो किसी अगर दरवाजे पे मर जाय तो घर का कोई हाथ न लगाएगा … उसके लिए चमर टोली से ही बुलाना पड़ेगा। वो अगर न आएं न खाएं न उतारे चमड़ा तो तुम्हारे दरवाजे ही परी रहेगी मरी गाय। दुर्गन्ध से जी नहीं पाओगी। चमड़े के बिना ढोल मृदंग न बनेगा तुम्हारे भगवान को फिर अरधोगी कैसे ?
सुगंधा नीलेश की बातें ऎसे सुन रही थी मानो उसने कभी इस तरह सोचा ही न हो… किसी के मुंह से ऐसी बातें सुनी ही न हो … घंटो नीलेश सुगंधा को समझता रहा … अंत में सुगंधा ने बस इतना कहा मेरी भी बकरी मरने वाली थी लला, दुआरे ही मर जाती तो जाने मैं क्या करती
~ सिद्धार्थ