*सुख या खुशी*
“सुख या खुशी”
मानव शरीर में सुख दुख दोनों समान रूप से मिलते रहते हैं हम जब खुश होते हैं तो लगता है कि हम सबसे बड़े सुखी जीवन बिता रहे हैं लेकिन ये सबसे बड़ी भूल है क्योंकि कुछ देर का क्षणिक सुख जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है।
हमें सुख या खुशी का आनंद लेने के लिए खुद को एकांत में अपने आपको किसी भी तरह से गहराई में जाना है और अंतर्मन में महसूस करना है।
आखिर असली सुख आनंद क्या है …..? ?
हम केवल क्षण मात्र खुशी आनंद को ही जीवन का सब कुछ मान लेते हैं जो गलत है ये मात्र एक छलावा है जिसे व्यक्ति संपूर्ण जीवन का सुखद अनुभव अनुभति मान बैठता है।
असली सुख आनंद खुशी तो आत्मा से परमात्मा का मिलन है जो एक दूसरे को जोड़कर परम आनंद की अनुभति कराता है।
आजकल जो किसी भी समारोह में धार्मिक अनुष्ठान भव्य आयोजन में जो देखने को मिल रहा है ये खुशी या आनंद नही सिर्फ क्षणिक सुख खुशी है बस कुछ देर के लिए आई और चली जाती है।
जीवन में हम जब खुश होना चाहते हैं तो किसी गरीब परिवार निसहाय व्यक्ति की मदद करके जो असीम सुख खुशी आनंद मिलता है वही हमारे संचित कर्म में भी जुड़ जाता है और बहुत समय तक खुशी बरकरार रहती है। मददगार हाथो से जब अच्छे काम निःस्वार्थ सेवा भावना करते हैं तो यही खुशी दुगुनी हो जाती है।
सुख या खुशी तब हमें मिलती है जब हम सच्चे दिल से कोई कार्य ईश्वर भक्ति से जुड़ कर करते हैं शुद्ध पवित्र आत्मा से निकलती हुई प्रार्थना प्रभु स्वीकार कर लेता है और वही प्रार्थनाएं हमें सम्बल बनाती है और हमारे जीवन में सारी मनोकामना पूर्ण होती जाती है हमें यही खुशी पूरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन पैदा हो जाती है।
परमात्मा भी हर क्षण हर पल प्रतिदिन सुबह शाम सोते जागते यही परीक्षा लेता है कि हम कहाँ तक सार्थक प्रयास करते हुए अपने कर्म बंधन में बंधे हुए हैं।
हमें अपने जीवन में जब कोई ख़ुशी का मौका मिले उसे दोनों हाथों से समेट लेना चाहिए।
भले ही वो कुछ पल क्षणिक खुशी मिल रही हो।
सुख की अवधि क्षणिक होती है उसे तुरंत ही पकड़ लेना चाहिए ताकि ये खुशी के हसीन पल कहीं छूट ना जाए।
सुख या खुशी आनंद बाटने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार है क्योंकि सुख व दुःख ये दो पहलू है जिसे हम कैसे स्वीकार करते हैं और कैसे अपने जीवन में सुख या ख़ुशी को एक दूसरे के साथ में कैसे बांट सकते हैं।
अब ये खुद पर निर्भर करता है कि हम सुख या ख़ुशी को आनंद मान कर भूल करते हैं या असली सुख या आनंद हम स्वयं के भीतर कैसे महसूस कर सकते हैं।
ये आत्मा से परमात्मा तक पहुँचने की लंबी सीढ़ी है जिसे धीरे धीरे चढ़ते हुए एक एक कदम बढ़ाते जाना है।
इसके लिए कुछ देर भाव शून्य होकर ध्यान साधना में लीन होकर खो जाना है एकदम शांत चित्त मुद्रा में आँखे बंद करके बैठ जाना है और फिर नियम से ये क्रियाएं करने के बाद जो सुखद अनुभूति अनुभव होगी यही परम आनंद सुख या खुशी है बाकी सब छलावा है।
संसार में सुख दुःख नाशवान है लेकिन परमात्मा का मिलन सुखद आनंद अंनत है।
जीवन में जब हम भौतिक व लौकिक सुख को ही आनंद मान लेने की भूल करते है यह असली आनंद खुशी नही है सिर्फ क्षणिक ही है।
जब हमारी पूर्णता क्षुधा शांत हो जाती है अंतर्मन में कोई हलचल ना हो तो उस स्थिति को हम आनंद कह सकते हैं।
इच्छाएं पूरी होती है मन शांत हो जाता है लेकिन इंद्रियां नही शांत होती है बल्कि कुछ और पा लेने की इच्छाएं जागॄत हो जाती है।
कुछ समय के लिए इच्छा शांत हो जाती है क्योंकि मन मुताबिक वस्तुएं या चीजें इच्छा पूरी हो जाती है और कुछ देर बाद फिर से वही इच्छा जागृत हो जाती है।
जब हम इस शरीर की इंद्रियों को काबू में कर लेंगे तो इच्छा उत्पन्न होने का सवाल ही नही उठता है….??
इंद्रियों को काबू करने के लिए कुछ देर ध्यान साधना में बैठकर स्थिर किया जा सकता है ये कुछ पलों में ही नहीं वरन दैनिक दिनचर्या नियम अभ्यास के दौरान ही अपने आसपास के वातावरण को भी नियंत्रण में रख सकते हैं जैसे जैसे ध्यान साधना बढ़ती जाएगी वैसे वैसे ही हम अपने अंतर्मन को नियंत्रित कर आत्म विश्वास जागृत कर पायेंगे।नियमित अभ्यास करने से अपने आपमें धैर्य संयम रखकर ही एकांतवास में अंतर्मुखी व्यक्ति बन सकते हैं।
मन को काबू में लाते ही एक अदभुत नजारा देखने को मिलेगा जिसे हम परमानंद की अनुभूति कहते हैं यही जीवन की असली खुशी
सुख का कारण है।
जिंदगी में इसी खुशी सुख की तलाश में ना जाने क्यों भटक रहे हैं जरा सी खुशी सुख को ही हम आनंद सब कुछ मान लेते हैं।
शशिकला व्यास✍️