हर स्त्री का सपना.. ..
माँ बनने का ये सुखद एहसास हर स्त्री के मन में होता है!नौ महीने गर्भ में धारण किये अपने बच्चे के लिए हर सुख और दु:ख सहन करती है! सब कुछ उसके हाथ में नहीं होता जो परिवार के मन मुताबिक औलाद पैदा कर दे! परिवार के लोग बड़ी आशा भरी नजरों से अपनी चाहत की औलाद पाने की तमन्नाएँ उपजायें हुये होते हैं लोगों की सोच यही होती है कि लड़का ही पैदा हो यदि लड़की हो गयी तो मानो अकाल पड़ गया हो!लोग लड्डू की जगह बताशे से काम चलाते हैं और पीठ पीछे कोई तो मुँह पर ही ताने कसने लगते हैं! कभी-कभी तो पति ही पत्नी को जिम्मेदार ठहराता है जो कि वह तो पूरी तरह से निर्दोष होती है लोग एक बेटे के इन्तजार में पाँच बेटियों की माँ बना देते हैं उस स्त्री को! जो असहाय है कह भी नहीं सकती की बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं है लेकिन परिवार वालों को तो कुल का दीपक चाहिए और कुलदीपक लड़का ही होता है लड़की नहीं!ऐसी हमारा मान्यताएँ है समाज की जो पितृसत्तात्मक समाज का आज भी पहलू बना हुआ है! इस कुलदीपक के चक्कर में जाने कितनी भ्रूण हत्यायें होती हैं हर रोज!सरकार ने प्रतिबन्ध लगवाये फिर भी चोरी छिपे ये घिनौनें काम हर रोज होते हैं! लेकिन एक माँ के अन्दर तो वही दर्द है चाहे लड़का हो या फिर लड़की! आखिर वो अपनी ममता का दर्द किससे बाँटे! रहना उसे समाज में है तो उसी के अनुरुप ही चलना होगा!
बड़ा दु:ख होता है जब एक माँ को परिवार की ख़ातिर कन्या भ्रूण हत्या का पाप करवाना पड़ता है! कितना असहनीय है एक माँ अपने ही बच्चे को अपने ही हाथों मजबूर होकर!
ये पल हर स्त्री के जीवन के बड़े नाजुक पल होते हैं जाने कितनी कठिनाइयों से होकर उसे गुजरना होता है कितनी पीड़ा लोग अक्सर कहते हैं जितनी औलाद होती है एक स्त्री उतने जन्म लेती है जाहिर सी बात है एक स्त्री में कितनी सहनशीलता है लेकिन एक सुनहरा एहसास भी है! यदि स्त्री किसी कारणवश माँ नहीं बन पा रही तो समाज उसे इतने उलाहने देने लगता है कि उसे कभी-कभी हराकर बहुत गलत कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ता है!
एक माँ जब गर्भ धारण करती है तभी से उसे अपने बच्चे के प्रति लगाव रहता है वह नियमित उसका ध्यान रखती है कभी उसने खाने का मन नहीं होता है फिर वह सोचती है नहीं! अगर मैं नहीं खाऊँगी तो मेरे अन्दर एक नन्हीं सी जान पल रही है जो बिना खाये रह जायेगी! फिर वह अपने बच्चे की ख़ातिर थोड़ा सा ही सही पर खाती जरूर है! उसकी हर एक हलचल को खुद के अन्दर महसूस करती है और समझ जाती है कि वह नन्हीं सी जान उससे क्या कहना चाह रही है! दुनियाँ में आने से पहले उसकी हर जरूरतों को घर में संजो कर रखती है और दुनियाँ में आने के बाद आजीवन उसकी ख्वाहिशें पूरी करती है!माँ बनना एक स्त्री को लिए सबसे बड़ा और सबसे सुखद एहसास है!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)