सुंदर तेरी मूरत है
तन से सुंदर मन से सुंदर सुंदर तेरी मूरत है।
चंचल चितवन मस्त अदायें अनुपम तेरी सूरत है।।
नैन नशीले ओंठ रसीले
बदन सजीला गदराए।
रूपबती फीकी लगती
उर्वशी रंभा भी शर्माए।।
रचनाकार ने रच डाली ये अनुपम तेरी मूरत है।
तन से सुंदर ……
छैल छबीली कमर लचीली
नागिन जैसे बलखाए
खुलें गेसू तो मेघ घटाएं
घुमड़-घुमड़ घिर छा जाए
मूरत अंकित दिल में ऐसी तू देवी तू तीरथ है।
तन से सुंदर ……
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’