सुंदरी सवैया
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सुंदरी सवैया
(8 सगण + गा)
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जब से तुम छोड़ गये हमको तब से इन नैनन नींद न आई ।
पलकें झपकें न गिरें अटकीं तुम जानत हो कब पीर पराई ।।
छलिया तुम हो छलते रहते हमको छल के उर फाँस चुभाई ।
नँदलाल हुई हमसे यह भूल बड़ी तुमसे निज प्रीत लगाई ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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