सीमा रेखा
आज मैं अपनी एक कहानी सुनाती हूँ जहाँ मैने अपने फर्ज को अपना कर्म और धर्म समझा। अब आप सभी पढ़कर ये जरूर बताइएगा कि मैने सही सही किया या गलत,प्रस्तुत है मेरी कहानी मेरी जुबानी “सीमा रेखा”।
सीमा रेखा एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही दिलोदिमाग में तरह-तरह की बातें घूमने लगती हैं।अपनी हद में रहना और अपनी मर्यादा को पार ना करना ही सीमा रेखा है। हमारा बचपन सुरक्षित था,ऐसी हैवानियत नहीं थी जो आज चारों तरफ देखने व सुनने को मिल जाती है। ऐसी ही एक घटना जिक्र मैं आपलोगों से करना चाहूंगी,जिसमें दो मासूम जुड़वा बच्चियों को बचाने में मैं सफल रही।भले ही वह मेरी बच्चियाँ नहीं थी पर मैं दो बेटों की माँ ज़रूर थी।
बात २०१२-२०१३ की है जब मैं नोएडा रहती थी।हमारी छोटी सी कालोनी में बहुत से लोग एक दूसरे के साथ घुल-मिलकर रहते थे।मैं सुबह रोज अपने बच्चों को उनकी स्कूल कैब तक छोड़ने जाती थी।कालोनी के बच्चे भी स्कूल जाते थे,उन्हीं बच्चों में दो प्यारी जुड़वा बहनें भी रिक्शा से स्कूल आती-जाती थी।आते-जातेसमय अक्सर मेरी मुलाकात रिक्शेवाले से हो जाती थी,पर पता नहीं क्यों वह रिक्शावाला मुझे ठीक व्यक्ति नहीं लगता था।
मैनें कुछ दिन ध्यान नहीं दिया लेकिन बच्चियों को उस रिक्शेवाले से डरता हुआ देखकर मेरा मन शंकित ज़रूर हुआ था।मैनें बच्चियों से बहुत पूछ्ने की कोशिश की पर बच्चियाँ रोने लगती। माँ-बाप दोनों नौकरी करते थे,बच्चियाँ आया के सहारे घर में रहती थी। एक दिन बच्चों को लाते समय मैनें उन बच्चियों में से एक बच्ची का गाल लाल हुआ देखा जैसे किसी ने मारा हो,मुझसे रहा नहीं गया मैंने रिक्शेवाले से पूछा, भईया बच्चियों को क्या हुआ? उसने बोला अरे मैडम! ये रिक्शे पर चढ़ते समय गिर गयी थी।बच्चियों को डर से कांपता देखकर मुझे लगा की कुछ तो कहीं गलत है।
अगले दिन सुबह मैनें अपने बच्चों को कैब में बैठाया और उस रिक्शे वाले का पीछा किया,मुझे जो डर था वही हुआ।वह रिक्शावाला बहुत ही कमीना इन्सान निकला वह सुनसान इलाके में रिक्शा रोककर बच्चियों के साथ गलत तरीके से पेश आ रहा था,बच्चियों के रोकने पर उसने बच्चियों को गाल पर थप्पड़ मारा और उनको गलत तरीके से छूने लगा।उसने अपनी सीमा रेखा की सारी हदें पार कर दी थी ।६ साल की मासूम बच्चियाँ रो रही थी।कुछ देर बाद उनको स्कूल छोड़कर वह घर चला गया। मैं अवाक सी खड़ी यही सोच रही थी की मैं क्या करुँ?मैं कालोनी में आयी कुछ औरतों से बात करके उसको सबक सिखाने का फैसला किया।हमने पुलिस को भी फोन कर दिया था।करीब ३बजे वो रिक्शावाला बच्चियों को लेकर कालोनी में आया,आज भी बच्चियों का गाल लाल था।ज्योंही उसने उनको उतारा और वापस मुड़ा जाने के लिये, तब तक हम सारी औरतों ने जूते,चप्पलों से अच्छी खासी धुलाई कर दी,पुलिस भी आ चुकी थी।शायद ये सब देखकर बच्चियों का डर भी थोड़ा कम हो चुका था,उनके कहे अनुसार पुलिस ने उसको हिरासत में लिया और चली गई ।
शाम को उनके माता- पिता से हम सबने बैठकर पूरी बात बताई ।वो लोग अवाक रह गये सब सुनकर उन्होने हमें धन्यवाद दिया।सबने बोला धन्यवाद हमारा नही आभा जी का करिए अगर आज वो ना होती तो मासूम बच्चियों का बचपन छीन जाता सही समय पर भगवान ने उनको भेज दिया की आज आपकी दोनों बेटियाँ सुरक्षित हैं। पति-पत्नी दोनों लोग उठकर आँखो में आँसू भरकर बोले आपने जो हमारे लिए किया है आपका एहसान हम कभी भूल नही सकते। मैने उनसे कहा बस इतना करिए अपने बच्चों को समय दीजिए ,उनकी बातें सुनिए ,उनको आया की नहीं अभी एक माँ की ज़रूरत है आप अभी नौकरी छोड़कर बच्चों को पूरा सहयोग दीजिये।कभी भी कोई सीमा रेखा पार करता नज़र आये तो उसे सबक ज़रूर सिखाइयेगा।
कुछ दिन बाद उन्होनें नौकरी छोड़कर अपनी बेटियों को लेकर रोज स्कूल आना-जाना शुरु कर दिया।आज भी उस कालोनी में है और खुश हाल जीवन बीता रही है।नीर और हीर अब बड़ी हो गयी है और समझदार भी।आज हम अच्छे दोस्त हैं।अंत में बस इतना कहना चाहूंगी कि सीमा रेखा पार करने वालों की यही सजा है।आप अपनेआस-पास नज़रें दौड़ाइए,ऐसे कई मासूम कितने हैवान लोगों के हाथों बलि चढ़ गए होंगे।ये मत सोचिए कि वो आपका अपना बच्चा नहीं है, क्या पता आज जो दूसरों के बच्चों के साथ हो रहा है कल हमारे बच्चों के साथ भी हो। अपनी सीमा रेखा जो भी पार करे उसको सबक सिखाना बहुत ज़रूरी है।
धन्यवाद।।
मौलिक
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश