** सीने पर गहरे घाव हैँ **
** सीने पर गहरे घाव हैँ **
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सीने पर गहरे घाव हैँ,
जीने के खोये चाव हैँ।
दिल में जो थे कब से दबे,
मन से निकले अब भाव हैँ।
बस्ती बदली – बदली लगे,
शहरों के तम में गाँव हैँ।
आँगन में निकली धूप भी,
शीतल बगिया की छाँव है।
जी लो जी भरकर जिन्दगी,
जीवन बाकी कुछ पाव है।
घटते – बढ़ते रहते सदा,
सहते आये हम ताव हैँ।
मनसीरत मन में तो प्रेम है,
नफरत में जलते दाव हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)