सीता स्वयंवर (सखी वार्ता)
सीता स्वयंवर
सखी वार्ता
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सिया राम बाग में मिले थे एक दूसरे से,
बिना बात बोले जुड़ी, प्रेम रस की कड़ी।
जोड़ी भी गजब की है, संस्कार बन जाय,
उठे सखी मुझे तो उमंग मन में बड़ी।
कहां की उमंग कहां जोड़ी को बनेगो जोग,
राजा ने प्रतिज्ञा सखी,ऐसी कर दी कड़ी।
चूर चूर हुए अरमान एक छन में ही,
कुटिल कठोर चाप, दृष्टि जो मेरी पड़ी ।
2
कमल से कोमल दिखाई देते राम तुझे,
सोचती हैं शिव चाप, तोड़ नहीं पाएंगे।
दिखने में लगते हैं,अंग अंग कंज जैसे,
बज्र के समान दंड, मोड़ नहीं पाएंगे।
बैठे बलधारी बड़े,बल के घमंड घड़े,
पौरुष से सबको ही , फोड़ नहीं पाएंगे।
नैनन से बाग में भले ही रिश्ते को जोड़ा,
बल से यहां संबंध, जोड़ नहीं पाएंगे।
3
खुशी की फसल हेतु , होकर किसान आज,
बंजर जमीन राम, गोड़ नहीं सकते।
मर्यादा में बॅंधे हैं, ऐसे ही बॅंधे रहेंगे,
सब छोड़ें मर्यादा छोड़ नहीं सकते।
मन में धधक रहे,अंदर से तो जुड़े हैं,
खुले आम नेह नाता जोड़ नहीं सकते।
जबतक विश्वामित्र, दादा गुरु कहें नहीं,
चाह के भी राम चाप, तोड़ नहीं सकते।
4
रावण ने तोड़ दिया, धनुष सभा में यदि,
हरियाली फसल पै ,पाला पड़ जाएगा।
जिसने उठाया है कैलाश शिव के समेत,
ये तो सिर्फ चाप है,सहज ही उठाएगा ।
एक बोली जवानी में, उठाया पहाड़ कभी,
अब तो बुढ़ापा है,वो जोर कहां आएगा।
रावण क्या रावण का बाप भी आ जाय कहीं,
पर कभी धनुष को, नहीं उठा पाएगा।
5
आपस की चर्चा में चाप को लेकर सभी,
जानकी के पक्ष को सबल बनाने लगीं ।
दुल्हन सिया बनें, दूल्हा बनें श्री राम,
एक जैसी होके,कामनायें सजाने लगीं ।
कोई एकादशी कोई सोमवार व्रत करें,
कोई बदना विशेष, ध्यान में लाने लगीं।
विश्वामित्र शीघ्र कहें, राम जी से चाप तोड़ो,
सरस्वती को सभी एक साथ मनाने लगीं।
गुरू सक्सेना