*सीता जी : छह दोहे*
सीता जी : छह दोहे
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1
मिले स्वयंवर से जिन्हें, मनभावन श्रीराम
जनकनंदिनी राम-प्रिय, सीता तुम्हें प्रणाम
2
हॅंसते-हॅंसते वनगमन, सीता का ही काम
पति के पीछे चल पड़ीं, छोड़ स्वर्ग-सुखधाम
3
रावण कपटी आ गया, लेकर तपसी-रूप
सीता को यों ले गया, दसमुख वाला भूप
4
सोने का कब था हिरन, सब माया का खेल
धोखा खा सीता गईं,पाई लंका -जेल
5
जिनके पिता विदेह थे, पति पुरुषोत्तम राम
मन उन सीता को भजे, प्रतिदिन आठों याम
6
सदा-सदा मन में बसे, सुखद राम-दरबार
सीता जिसकी स्वामिनी, हनुमत जग-आधार
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451