सीख
मेरे हिस्से के पाप, भी उसने कर डाले।
झूठ मूर्ति बन मुझको सत्य सीखा डाले।।
आवारापन बन मुझको सही दिशा दे दी।
नफरत ने उसके मुझको खूब दया दे दी।।
उसकी बेपरवाही ने बतलाया, चलो अकेला।
बुत बन खड़े सभी, था रिश्तों का एक मेला।।
बिना कहे कह दिया, है मुझको उल्टा चलना।
है सौभाग्य की बात यहां ऐसा रिश्ता मिलना।।
सीखो सबसे हर रिश्तों से, पर किश्तों में नहीं।
“संजय” घृणा न सीखो, पर करना हो जो सही।।
जै मां अम्बे