सीख
शीर्षक –सीख
“कौन करेगा इनके बिस्तर साफ?जब देखो तब गंदा करती रहतीं हैं।”देवरानी ने नाक से साड़ी का पल्लू दबाया
“बड़ी के ठाठ हैं।कुछ करना न पड़े इसलिए अलग हो गयीं। एक नम्बर की मतलबी औरत।”ननद ने तड़का लगाया।
अपने कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ते रीता के कान में शब्द पड़े ।क्रोध तो आया कि पलट कर जबाव दे दे कि वह हुई अलग या साल में आठ महीने मायके रहने वाली ननद को अपना साम्राज्य छिनता नज़र आया।
अनसुनी कर वह जैसे ही आगे बढ़ी ,”करें
क्या इनका अब?मेरे वश का नहीं है दीदी।”
रीता उल्टे पाँव लौट सास के कमरे की ओर बढ़ी।दरवाजे पर पहुँचते ही बदबू के झौंके ने स्वागत किया।एक पल को जी मिचलाया और वह वापिस मुड़ी ही थी कि कुछ शब्द कानों में सरगोशी कर गये।
“बेटा, हर लड़की को ससुराल में निभाना पड़ता है। और फिर इसमें गलत भी क्या?बुढ़ापे में शरीर अशक्त हो जाता है तो घर के सदस्य ही देखभाल करते हैं।इतने बड़े परिवार का यही तो मजा है। एक दूसरे की मदद हो जाती है।”
“पर मम्मी ,अम्माँ ने सारी जिंदगी आपको कोसने,रंग रूप पर ताना मारने और नौकरों से भी गया बीता सुलूक किया।फिर भी आप ..।”
“पगली, वो उनका स्वभाव है।नहीं छोड़ा तो मैं अपना कैसे छोड़ दूँ?कोई न देखे, न सराहे तो क्या ?वो ऊपर वाला तो है।”
रीता ने अपने को सँभाला। नाक को साड़ी के पल्लू से ढाँक सास की ओर बढ़ गयी।उन्हें जैसे तैसे उठा कर साफ किया ,कपड़े बदले।
माँ की सीख ने आज उसे संतुष्टि का अहसास करा दिया था।आखिर माँ तो माँ ही होती है न!
मनोरमा जैन
मेहगाँव,जिला भिंड
मध्य प्रदेश