सिसक रही है चिट्ठियां
सिसक रही है चिट्ठियां,
छुप-छुपकर साहेब !
जब से चैटिंग ने भरा,
मन में झूठ फ़रेब !!
भँवर सभी जो भूलकर,
ले ताकत पहचान !
पार करे मँझदार वो,
सपनों का जलयान !!
✍ सत्यवान सौरभ
सिसक रही है चिट्ठियां,
छुप-छुपकर साहेब !
जब से चैटिंग ने भरा,
मन में झूठ फ़रेब !!
भँवर सभी जो भूलकर,
ले ताकत पहचान !
पार करे मँझदार वो,
सपनों का जलयान !!
✍ सत्यवान सौरभ