सिया मान मेरी बात
राम -सिया मान मेरी बात मत चालै मेरे साथ मै तो बार-बार अर्ज करूं कि बहुत घनी दुख पावै
सीता -पिया मान मेरी बात मैं तो चालू तेरे साथ मैं तो बार-बार अर्ज करूं कि कुछ नहीं दुख पाऊं
राम- घर से कदम तेरा बाहर पड़ा ना दर-दर की ठोकर होगी खानी
कहीं धूप कहीं छावै होगी काटो भरी राह फिर मैं के जतन करूं
सीता -मानो पिया चाहे मत मानो मेरा अवध में रहना मुश्किल है
नहीं और कुछ चाहूं तेरे संग संग आऊं नहीं कोई शिकायत करु
के कुछ नहीं दुख पाऊं
राम – सेज बिना तुम सो ना सकोगे हो राजा की राजदुलारी
होगी दिल पर उदासी कैसे रहो भूखी प्यासी मैं तो इस लिए बहुत डरी
सीता – भूखे प्यासे जब तुम रहोगे मैं भी भूखी रह लूंगी
नहीं घबराऊ तेरी टहल बजाऊ नहीं फर्ज से आज गिरू
राम- बलदेव सिंह ना देख सके तेरे दिल पर उदासी छाई हुई
नहीं मिलेगा आराम तेरा जीना हो हराम मैं भी बिन आई मौत मरू