सियासत
सिया सत के सत् की परिक्षा, वह मर्यादा प्रभु राम की।
आज सियासत मिल कर भी, नही रही किसी काम की।।
औरो खातिर जिनको पहले, न चाह थी निज आराम की।
आज स्वारथ वस करे छलावा, रहा सेवा तो बस नाम की।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०७/१२/२०१८ )