सिन्दूरी मुस्कान
सिन्दूरी मुस्कान
नयनों में मधुशाला झलके,
अधरों पर खिले फूल पूनम के।
मुख पर दमके चन्द्र ज्योत्सना,
मुसकाओ जो हल्के हल्के…
सिन्दूरी मुस्कान की लौ से,
चंदन वन में आग लग गई।
ओढ़ चुनरिया लाल मलय की,
वसुधा दुल्हन सी आज सज गई।
प्रिय मिलन उन्मत वधु के पग से,
रह रह कर ज्यों पायल खनके।
मुसकाओ जो हल्के हल्के…
बरस उठीं सावन की फुहारें,
बंजर में हरसिंगार खिल गये।
संसृति के मृदु मयुर नृत्य से,
धरती और आकाश मिल गये।
रूप के कंचन घट से जैसे,
रह रह कर सुधारस टपके।
मुसकाओ जो हल्के हल्के…
जली वर्तिका बुझे दीप की,
एक झलक अनुराग भर गया।
सप्त स्वर झंकार कर उठें,
पतझड़ भी मधुमास बन गया।
पुलकित किलकित कामिनी के मुख पर,
रह रह कर ज्यों दामिनी चमके।
मुसकाओ जो हल्के हल्के…