सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने…
मोह माया में रमा नहीं,
वह महामाया का लाल हुआ,
राज-पाट के महलों में जन्मा,
राजा शुद्धोधन का ‘सिद्धार्थ’ हुआ,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।१।
आनंद विलास के भ्रमित संसार में,
यशोधरा से विवाह हुआ,
जन्म-मरण के जीवन में,
राहुल पुत्र का सौभाग्य मिला,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।२।
छन्दक कंथक को ले सिद्धार्थ संग,
राज भ्रमण को साथ चला ,
भेंट हुई बीच राह में,
वह चार दृश्य संसार का ,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।३।
झुकी कमर लाठी की टेक में,
निर्बल प्राणी बाल सफेद थे,
देख वह ‘बूढ़ा’ बुजुर्ग संसार में,
मन में एक सवाल जगा,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।४।
पीड़ा से तड़प रहा था ,
ऐसा एक अनजान मिला,
आंँखों में आंँसू लिए हुए ,
‘रोगी’ से विचार हुआ,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।५।
शोक में डूबे भीड़ जगत में,
कंधों में जाता एक इंसान मिला,
एक दिन सबको जाना है त्याग जीवन को,
‘मृत शरीर’ होने का एहसास हुआ,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।६।
जीवन में दुख है सुख अस्थायी,
मिला राह में एक ऐसा राही,
प्रसन्न मन और उज्जवल चित्त लिए,
‘सन्यासी’ दिख रहा खुश था,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।७।
छन्दक ने बताया कुँवर को,
प्राणी होते प्राण है जिसमें,
बच न सका कोई दुख के संसार में,
मानव का कल्याण करें,
सिद्धार्थ से वह ‘बुद्ध’ बने …..।।८।
रचनाकार-
****बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।