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8 Apr 2018 · 4 min read

साहित्य समाज का दर्पण है -रस्तोगी

“साहित्य समाज का दर्पण है” वो कैसे ?जिस तरह से आप दर्पण या शीशे (Miror) में अपने आप को देखते हो या निहारते हो तो आप उसी तरह से दिखाई देते हो जैसे आप हो| ठीक उसी तरह से साहित्य भी ऐसे देखने को मिलेगा जैसा समाज है क्योकि कोई लेखक या कवि वही लेख या कविता लिखता है जो वह समाज में देखता है या सुनता है |समाज की क्रियाक्र्लाप ही उसको लिखने के लिए प्रोत्साहित करते है, उदाहरणार्थ मुंशी प्रेम चन्दजी ने अपनी कहानियों या उपन्यासो में वही लिखा जो उस समय मुंशी प्रेम चन्द जी ने देखा | उस समय समाज में कितनी गरीबी थी कितनी बेरोजगारी थी या कितनी परेशानिया थी यह सब कुछ वर्णन उनकी कहानियो या उपन्यासों में देखने को मिल जायेगा| दो बैलो की जोड़ी की कहानी “हीरा मोती”,”कफ़न”,”निर्मला”,”मंगल सूत्र”,”गोदान” इसके जव्लन्त उदाहरण है| उस समय धनाढय लोग या महाजन या बनिए लोग किस तरह से अपने बही खातो में या कोरे कागजो पर गरीब किसान व मजदूरों से उनके दस्तखत या हस्ताक्षर (Signature) करा लेते थे ओर उन्हें कर्ज देते थे ओर किस प्रकार उनका पूरी उमर उनका खून चूसते थे| बेचारे गरीब किसान एक बार कर्ज लेकर सारी उमर कर्ज में डूबे रहते थे| यह सब कुछ समाज ओर किसानो की दुर्दशा उनके हीरा मोती ,गोदान उपन्यास में देखने को मिल जायेगा|मुंशी प्रेम चन्द जी की कहानियो व उपन्यासों के आधार पर कुछ फिल्मे भी बन चुकी है जैसे “गोदान”| कुछ कहानियी के आधार पर कुछ सीरयल भी बन चुके है |

आज इस संदर्भ में जो कुछ हमारे समाज में चल रहा है वह सब कुछ आपको अखबारों में,पत्र पत्रिकाओ में मिल जायेगा, इसके साथ आपको उन सीरियल में मिल जायेगा जो सब आप दिन प्रति दिन अनेको सीरियलों में देख रहे है|हर सीरियल में किसी न किसी रूप में समाज में क्या हो रहा या चल रहा है ,उसकी छाया आपको अवश्य दिखाई देगी ओर जो भी पिक्चर आ रही या चल रही है उन सब में भी समाज का असली रूप या छाया दिखाई देगी,चूकि आप भी समाज की एक छोटी इकाई है तो हो सकता है कि जो आप पिक्चरो या सीरियलों में दिखाया जा रहा है वह सब कुछ आपके जीवन में किस हद तो गुजर रहा होगा ,अर्थात आप भी प्रत्यक्ष या अप्रयत्क्ष रूप में उस सीरियल या पिक्चर के पात्र है |

आज जो कुछ सीरियलों में, पिक्चरो में ,सोशल मीडिया में,न्यूज़ पेपरों में,मैग्जीनो में पढ़ रहे है या देख रहे है यह सब कुछ समाज में हो रहा है| जिस समय में जैसा समाज होगा वह सब कुछ उस समय के साहित्य में आपको देखने को अवश्य मिल जाएगा| अगर हम अपना पुराना साहित्य देखे तो हम अपने पुराने समाज के लोगो के विचार, उनकी सोच,उस समय के रीति रिवाज ,उनकी उस समय क्या इच्छाये थी सब कुछ पता चल जाएगा पर इसके लिए पुराना साहित्य या इतिहास देखना होगा | इसी तरह से अगर आप किसी देश के समाज,उनके रीति रिवाज को देखना चाहते है या पढना चाहते है या समझना चाहते है या वहाँ के समाज में क्या हो रहा है,उनकी क्या विचारधार है वह सब कुछ उनके साहित्य में अवश्य मिल जाएगा |

हो सकता है कि उस पुराने समाज में ये सब साधन न हो जो इस समय आधुनिक युग में आपको उपलब्ध है ओर देखने को मिल रहे है | पुराने समाय में न तो सोशल मिडिया था,न whatsapp था न मोबाइल था | उस समय केवल प्रिंट मीडिया था यानिकी अखबार या छोटे मोटे प्रेस हुआ करते थे जिनके द्र्वारा साहित्य लिखा जाता था| जिस समय जिस प्रकार की सुविधाये होती थी उसी प्रकार उनका उपयोग किया जाता था ओर उसके द्वारा समाज का वर्णन या बखान किया जाता था ओर वही उसका दर्पण था |दर्पण को दूसरे सब्दो में माध्यम भी कह सकते है|समय समय के अनुसार इस दर्पण की आक्रति या शेप बदलती रहती है|पुराने समय में पुरानी किताबे,पुराने पत्र पत्रिकाये या धर्म शास्त्र ही समाज के दर्पण रहे होगे जो उस समय के रीति रिवाजो व विचारधाराओ को बताता था |हो सकता है कि आज जो दर्पण के रूप में साधन चल रहे है वह नई टेक्निक आने पर यह दर्पण रूपी साधन भी इस समय बदल जाए,हो सकता है कि इस समय उन नए साधनों की काल्पन भी न कर सके जी इस परिवर्तनशील समय व संसार में ओर नई टेक्निक आने पर सब कुछ बदल जाए|उदाहरणार्थ,आज कल हमारे वैज्ञानिक बहुत से नये ग्रहो की खोज कर रहे है| मंगल ग्रह,ब्रहस्पति ग्रह की खोज पहले से ही कर चुके है पर वहाँ जीवन के साधन है या नहीं उसकी खोज में जुटे हुए है,हो सकता है कि आने वाले वर्षो में यह सम्भव हो कि वहाँ जीवन के साधन उपलब्ध है तो हम स्पेस रुपी दर्पण से वहाँ के अर्थात मंगल ग्रह या ब्रहस्पति ग्रह के बारे में समझ सकेगे ओर वहाँ के समाज के बारे में लिख सकेगे ओर एक आपको एक नया समाज तथा वहा के जीव जन्तु ओर उनका जीवन देखने को मिलेगा ओर उसको किसी दर्पण (साधन) द्वारा देख सकेगे | अतएव् मेरा मानना है ओर पूरा विश्वास है कि “साहित्य समाज का दर्पण है”

मेरा सभी पाठको से करवध निवदेन है कि वे मेरे उपरोक्त विचारो से सहमत है या नहीं | अगर सहमत नहीं है तो अपनी भी विचारधारा प्रस्तुत करे | अगर सहमत है तो भी विचार या टिपण्णी देने का कष्ट करे,आपकी अति कृपा होगी ओर मेरे ज्ञान में बढ़ोतरी करने में सहायक होगे |

आर के रस्तोगी

Language: Hindi
Tag: लेख
220 Views
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