साहित्य में बढ़ता स्तरहीन रचनाकर्म
बढ़ता स्तरहीन रचनाकर्म
साहित्य का सीधा ,सरल अर्थ है सा+हित ..यानि वह लेखन या पुस्तक जिसमें हित की बात शामिल हो । हित –परिवार का,समाज का,शहर-नगर कादेश का,राष्ट्र का , रिश्तों का। और गुजरे दौर में ऐसा लेखन हुआ भी है जिसने आदि काल से लेकर आज तक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।फिर चाहे युद्ध हो ,स्वतंत्रता आंदोलन हो ,शिक्षा हो ..एक प्रेरक और मार्गदर्शन करता लेखन हुआ है।
शायद इसलिये कि तब जज्बा था ,जोश था ,देश से प्रेम था ,संवेदनायें थी और था माँ भारती के लिए आदर ,सम्मान ,श्रद्धा। देश की परिस्थितियों ने आबाल -वृद्ध सभी को एक सूत्र में पिरोया हुआ था।
आजादी मिली और हम अपना लक्ष्य भूल गये । आजाद होकर देश की अस्मिता भूल गये । इतने स्वच्छंद हो गये कि इस आजादी के लिए दुधमुँहों तक को मौत के घाट उतारा गया था भूल गये।अंधानुकरण ,भ्रष्टाचार, लालच ,आरक्षण जैसे दीमकों ने देश को ,उसकी सभ्यता को ,संस्कृति को खाना शुरु कर दिया।
और यहीं से पतन शुरु हुआ मानसिक,वैचारिक दृष्टिकोण का।
अब अश्लील शब्दों को गढ़ना या स्तरहीन लेखन ही साहित्यकार होना मान लिया गया है।
और इसे बढ़ावा मिला फेसबुक ,व्हाट्सप व अन्य एप के कारण। कुछ भी लिखो ..झूठी वाह वाही ने लोगों को आत्म-मुग्ध कर दिया।
रही सही कसर छपास ने पूरी कर दी।कुकुरमुत्तों की तरह विभिन्न लुभावनी शर्तों वाले पब्लिकेशन्स के चलते यह छपास भी पूरी हो रही है। लोग पैसा देते हैं तो पब्लिकेशंस की जिम्मेदारी बन जाती है कि उस लेखन को पब्लिश.करना या छापना।
उस स्थिति में वह इंकार भी नहीं कर सकता।
पहले जो पत्रिकायें पब्लिश होती थीं उनमें वैचारिक लेखन होता था।कवितायें स्तरीय व मन को छूने वाली होती थीं।
आज की कुछेक कविताओं को छोड़ दें तो स्वतंत्र लेखन हो या छंद सृजन ..अमूमन मनमाना सृजन चल रहा है। एक ही रचना में जरा सा हेर फेर कर अन्य जगह प्रेषित करना भी अन्य वजह है कविता के गिरते स्तर हेतु।
फेसबुक पर अनेकों समूहों से जुड़े.लोगों का जुनून इतना है कि सब समूहों में लिखना है , डिजिटल सम्मान पत्र लेना है। और एक दिन में इतनी रचनाओं को लिखना वह भी स्तरीय सृजन मुश्किल है।
एक साहित्यकार ने जितनी रचनायें अपने पूरे जीवनकाल में लिखी होंगी ,उतना आज का लेखक लगभग तीन माह में लिख चुका होता है।फिर स्तरीय सृजन की कल्पना ही बेबुनियाद हो जाती है।
एक अन्य कारण है कि आज का लेखक बस लिखना चाहता है और दूसरों को पढ़ाना चाहता है पर दूसरों का लिखा पढ़ने हेतु उसके पास समय ही नहीं। जब तक आप किलो भर पढ़ेगे नहीं ,पाव भर स्तरीय लिखना सँभव ही नहीं।
इसलिए किसी ने कहा भी है पढ़ो मन भर ,लिखो पावभर ।
मनोरमा जैन पाखी