“ साहित्यकार और गाली -गलोज ? “ ( व्यंग )
“ साहित्यकार और गाली -गलोज ? “
( व्यंग )
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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साहित्य के क्षेत्र में हमें उपलब्धियां बहुत मिलीं ! कई किताबें छप गयीं ! प्रकाशित और विमोचन भी बड़े -बड़े प्रकाशक और जाने – माने दिगजों ने किया ! तारीफ़ों की पूल बाँधीं गईं ! कई तरह के पुरस्कार दिए गए ! आए -गए दिन हमें शिक्षण संस्थानों में मुख्य अतिथि बनाया गया !
सबों के हम प्रेरणा -स्रोत बन गए ! सारे जहाँ में हमारी चर्चा होने लगी ! साहित्य जगत के “सुपर स्टारों” में हमारी गिनती होने लगी ! सहस्त्रों फेसबूक के मित्र हमसे जुड़ गए ! विशाल सैन्य संगठन हो गया ! चारों दिशाओं में हमारी चर्चाएं होने लगीं ! प्रशंसाओं की मालाएं यदा -कदा पहनाई जाती थीं !
मुकुट और पाग सम्मान से पहनाए जाते थे ! आरती हमारी उतारी जाती थी ! हम दीप प्रज्वलित करते थे ! शंखों की ध्वनियों से दसों दिशायें गूँजने लगतीं थीं ! लोग हमारे स्वागत में स्वागत गान गाते थे ! हमारी उपस्थितियों को लेकर नारे लगाए जाते थे !
पर ,कहाँ एकसा किसी का रहता है ? हाँ ,रहता है जिसे आजन्म लोग याद करते हैं ! महान सेनापति , महानायक ,महान विभूती और महान लोग अपने कुशल संगठन और अपने कृतिओं से एक सुनहरा अध्याय छोड़ जाते हैं ! पर हमारी अकर्मण्यता , कुम्भकरणीय प्रकृतिओं ,अकुशल नेतृत्व ,अशिष्टता ,अव्याहवारिकता और संवादरहित भंगिमाओं ने हमें सफलता के ऊंचाईओं से क्षण में धरातल में उठा के पटक दिया !
मित्र बिछुड़ने लगे ! लोगों के जहन में यह प्रश्न आया कि अशिष्ट भाषा और शब्द का प्रयोग हम कैसे करने लगे ? श्रेष्ठ ,समतुल्य और अनुजों को सम्मान और संवाद करना कैसे छोड़ दिया ? जिन लोगों के प्यार और सम्मान से हमने बुलंदियों को छुआ है उनको तिरस्कार करके हम शायद ही चमकते सितारे बन पाएंगे !
मृदुलता ,शालीनता ,शिष्टाचार और लोगों के हमदर्द बनकर हम सम्पूर्ण व्यक्ति बन सकते हैं अन्यथा लोग हमें एतिहासिक पुरुष बनना तो दूर अपने फेसबूक के पन्नों से ही मिटा देंगे ! फेसबूक के पन्नों को सारा विश्व पढ़ता है “ अपशब्द ,गाली -गलोज “ देकर क्षणिक प्रशंसा के लिए अपनी छवि धूमिल ना करें !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत