साहब जी हैं व्यस्त
होते हैं सब भाग्य से, राजा रंक फ़क़ीर
हरे परायी पीर जो, कहलाता वह पीर
इतना भी क्या दे रहे, इन मूंछों पर ताव
थोड़ा सा तो दीजिये, प्रेम भाव को भाव
कुछ तो रम में रम रहे, कुछ को हैं प्रिय राम
कुछ को कर्म प्रधान हैं, कुछ पुजते बिन काम
कुछ सोने में व्यस्त हैं, कुछ सोने में मस्त
सोना चाहो तुम अगर, रहो कर्म में व्यस्त
मत से था मतलब कभी, अब मत पाकर मस्त
मत देकर कुछ माँग मत, साहब जी हैं व्यस्त
जब जब रन में तू भिड़ा, हारा है नापाक
फिर क्यों जबरन मुँह उठा, इधर रहा है ताक