सास बहू
सास बहू
आजकल देखने में आता है कि सास भी कभी बहु थी ।
पर मेरा यह मानना है कि जब सास ,बेटी नही थी यह आभास क्यों नही होता ,
और जब सास थी तब वहः बहु पर रोब जमाना कैसा बर्ताव है या जब बहु थी तब वहः सास पर हक चलाना भी कैसा बर्ताव है ।
य्यानी यह है अपने द्वारा किये गए बर्ताव का गूसा बहु या सास पर क्यों ।
अगर देखा जाए तो इसमे टी वी के सीरियल का भी रोल अदा होता है ।
मेने एक सीरियल देखा साथ निभाना साथिया में एक सास जो की मोदी परिवार से जुडी है गोपी बहु की कहानी है जिसमे वो अनपढ़ थी बाद में सास ने सकारात्मक राह पर ले जाकर पुरे घर को अपने बल पर और काना जी को साक्षी मानकर जिम्मदारी से संभाला ।
पर सीरियल में जेट जेठानी की लड़ाई भी सास का चकमा और बहू का उदास होना भी यह जताता है कि नारी की नारी दुश्मन का जहर भी परिवार की खुशियां ले डूबता है ।
अगर यह कहा जाए की सास कभी बेटी थी और बहू कभी बहन थी तो कहने में कोई अतिश्योक्ति नही होगी ।
✍✍प्रवीण शर्मा ताल