सास बहू
विधा:- घनाक्षरी
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बठेला कपार रोजऽ, लड़े ले बहाना खोजऽ,
सासुजी से कबो नाहीं, बोले ले पतोहिया।
केतनो चिल्लात रहें, बाबु दादा कुछु कहें,
जगहि से अपनी ना, डोले ले पतोहिया।
माहुरऽ उगिलि देले, आगि पानी मुँहे लेले,
मुँहवा के अपनी जो, खोले ले पतोहिया।
बाड़ा परेसान करे, आफते में जान करे,
जहरऽ जिनिगिया में, घोले ले पतोहिया।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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