सावन सजनी पर दोहे
सावन महिना आ गया,पवन मचावे शोर।
डालो पर झूले पड़े,नाचे बन में मोर।।
मेरे साजन घर नही,सतावे उनकि याद।
तड़प रहा मेरा मन,सुने कोए फरियाद।।
सावन के आते बढ़ी,पिया मिलन की आस।
बैठ गई सज संवर के,सजनी पी के पास।।
बिजली हर तरफ चमके,करे घटा संगीत।
तड़पे सजनी रात भर,पास नही जब मीत।।
धरती हर्षित हो रही,घिरी घटा घनघोर।
पुरवाई भी कर रही,मधुर मनोहर शोर।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम