सावन में बिरह
मदिरा सवैया में रचित:
सावन में मन झूम रहा ,अब आ न मिलो हमसे सजना।
लाल कपोल हुए मुख पे, अब पायल चाह रही बजना।
भींग रहा तन आज पिया,मन बोल रहा हमको तज ना।
छेड़ रही सखियाँ हमको, हम भूल गए सजना धजना।
बागन में जब कोयल बोल, सुने मन बाण लगे धसना।
नैनन में मुरझान भयो,अब दिखत होठन में रस ना।
यौवन झूम रहा तनहा, उर भावत ना दनडा कसना।
रैन बीते विकराल लगे अब, दूभर बीरह में जलना।
बून्द पड़े तन पर बिछले, मन में एक आग लगे जलना।
रोम हिले दिल भी मचले, धड़के वक्ष जोर सहूँ फटना।
राह चले सब घूर रहे, मुझपे रति का अब है बसना।
चाह रही अब आस यही,तुम आकर बाहन में कसना।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
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