सावन भादों जितना बरसे
मुक्तक
व्याकुल प्रिय से मिलने को मन, करता है प्रभु से मनुहार।
उर अंतस की दीवरों से, बार बार रिसता है प्यार।
मेघों के अति प्रेमामृत से, बुझी नहीं धरती की प्यास।
सावन-भादों जितना बरसे, धधक रहे उतने अंगार।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)