सावन के दोहे
काले बादल सुन जरा,धरती करे गुहार।
तन मन मेरा जल रहा,बनकर बरस फुहार।।
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बूटा बूटा खिल उठा,धरती पड़ी फुहार।
दुल्हन बनी वसुधा सजी,गाती गीत मल्हार।।
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सावन के संग आ गई,बादल तेरी याद।
जम कर बरसों आज तुम,बढ़े तीज का स्वाद।।।
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अंतर कुछ लगता नहीं,पानी हो या आग।
कान्हा के वैराग में,क्या सावन क्या फाग।।
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झूला झूलूं बाग में,झोटा दो तुम श्याम।
नाचो कूदो साथ में,छोड़ो सारे काम।।
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धानी चूनर घागरा,चोली पहनी आज।
देख मेघ बौरा गए,धरती को ऋतुराज।।
वैशाली रस्तौगी
जकार्ता इंडोनेशिया