सावन की मल्हार
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* मल्हार *
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अब कै तौ बिछुड़े , भायेली जानै कब मिलें जी ।
ऐजी चलौ झूलिंगे ,बागन में झूला डार ।।
अब कै तौ बिछुड़े…….
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हम धान की पौध सी हैं बहना ,
जाने कहाँ उगना कहाँ पै रुपना ,
कोऊ नाय जानै , भायेली जाने को फलै जी ।
ऐजी पत राखै है ,हमारी करतार ।।
अब कै तौ बिछुड़े……1)
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हम अमर बेल सी बेल सखी ,
जाने कौन के आँगन जाय छवीं ,
बेल बिना जड़ , जाने कब लौं चलै जी ।
ऐजी देवी मैया नै ,सम्हारी पतवार ।।
अब कै तौ बिछुड़े…..2)
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हम बागन की हैं चिड़िया सी ,
उड़ जाँय कहूँ गौरैया सी ,
बिछुडें तौ जियरा ,दिवरा सौ जलै जी ।
ऐजी पल्लौ थामै है ,हमारौ भरतार ।।
अब कै तौ बिछुड़े…..3)
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हम वृन्दा कौ बिरवा या घर,
पर सेवा धरम बनै वा घर,
छूटै है पीहर , मन कूँ ना खलै जी ।
ऐजी मन में फूटैं हैं ,सुधा सी रसधार ।।
अबकै तौ बिछुड़े …..4)
–
हम उड़ती सी नभ की पतंग,
ठुमकैं हैं नाचें डोर संग,
मुड़ैं हैं उती कूँ , जित ठुमकी हलै जी ।
ऐजी बन कै छावैं हैं ,रँगीली रे बहार ।।
अब कै तौ बिछुड़े……5)
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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