“सावन की घटा”
“सावन की घटा”
सावन की घटा छाई ,
ऋतु मनभावन आई ,
मन में उमंग लाई ,
हरियाली छाई है।
काली काली घटा छाई ,
धरती भी मुस्काई ,
बरखा बहार आई ,
मन हरषाई है।
हरियाली चहुँ ओर ,
प्रीत संग बंधी डोर ,
सखियाँ मचाती शोर,
मन भरमाये है।
झूला डले आम पर ,
पँछी उड़े डाल पर ,
शीतल जल फुहार ,
खुशियाँ अपार है।
हाथों में मेहंदी रचे ,
हरी हरी चूड़ी सजे ,
पाँव पैजनिया बजे ,
प्रेम गीत गाई है।
शशिकला व्यास