सावन का मदमस्त महीना
सावन का मदमस्त महीना
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सावन का मदमस्त महीना, बरसे बदरा झूम के।
मोर पपीहा नाचन लागे, जंगल – जंगल घूम के।
झिंगुर मेढक शोर करें
संगीत सुनाएं मनभावन,
बम भोले बम भोले से
जैसे झूम रहा सावन।
हरियाली चहुओर दिखे
कृषक मन हर्षाया है,
जैसे सावन मस्त मगन हो
खुशियाँ ही बरसाया है।
खुशियों की बरसात हुयी है, जैसे घर घर घूम के।
सावन का मदमस्त महीना ,बरसे बदरा झूम के।
बम भोले की गूंज उठी है
कावडिय़ों की टोली में,
गंगा जल भर चले चढाने
उमंग भरी है बोली में।
कांधे कावड़ भाग रहे हैं
थकन नहीं है यहाँ अभी,
भक्तिभाव में सराबोर हो
रंगे हुए है यहाँ सभी।
बम – बम भोले बोल रहे है, गली गली में घूम के।
सावन का मदमस्त महीना,बरसे बदरा झूम के।
बदरा बरसे मोर नाचते
देख पपीहा चहक रहा,
पी मिलन को विरह अगन में
विरहन का मन दहक रहा।
सावन सुंदर सुखद सुहावन
लगता है ये मनभावन,
हरित चूडिय़ां भरी कलाई
सजा सवरा है घर आँगन।
सजन मिलन की खुशी बाटती,सजनी घर घर घूम के।
सावन का मदमस्त महीना, बरसे बदरा झूम के।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”