साल में
साल में
कई साल बीत गए,दूर-दूर रहते हो ,
आखिर फंसे हो तुम, किस माया जाल में|
जाल में फंसे हो फिर भी दिखाते होअकड़,
झुठलाते मुझको ही,चतुर हो चाल में|
चाल में ही रहते हो मस्त बोलते न कुछ,
कौन सी व्यथा बताऊँ,तुम्हें इस हाल में|
हाल में हों कैसे भी,परन्तु यही सोचता हूँ,
खुश रहें सारे मित्र, इस नए साल में |
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम