सालों से तो मंज़र यही हर साल होता है
सालों से तो मंज़र यही हर साल होता है
देखिए इस साल क्या फिलहाल होता है
बात अपनी कभी लाए नहीं ज़ुबां तलक
कलेजे में सुलगता हुआ, सवाल होता है
हरवक़्त बोझ ज़ेह्न पे हरवक़्त दिल हैराँ
आदमी के हाथों आदमी हलाल होता है
सीधी सच्ची बात भी हंगामा बरपाए हैं
अब आदमी होने पे भी मलाल होता है
अंधेरे दबंग हो गए,रोशनी भी बदचलन
सियासत में हर रोज़ ही कमाल होता है
मसाईल तो हजारों हैं,सुलझे मगर कैसे
तहरीरें हैं, दलीलें हैं और बवाल होता है
मरना यहाँ हर रोज़ एक हादसा हो जेसै
जीना कहाँ किसी का खुशहाल होता है