साला – जीजा।
साले जी चाहते तो फोन पर भी बात कर सकते थे किंतु मुद्दा संवेदनशील था इसलिए वे सुबह सुबह जीजा जी के घर पहुंचे और नौकर को हुकुम दिया कि जीजा जी को बुलाओ। नौकर हुक्म की तामील करने चला गया।
साले जी ड्राइंग रूम में पड़े अति सुविधाजनक आयतित सोफे पर पसर गए।
थोड़ी देर पश्चात जीजा जी बाहर आए। बीती रात एक बड़ी डील फाइनल होने के पश्चात सभी प्रकार के मादक वस्तुओं की मैराथन पार्टी हुई थी। जीजा जी अभी भी तरंगित अवस्था में थे। सुबह सुबह उठाए जाने के कारण चिढ़े हुए थे। बगल में बैठ कर साले की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा।
साला क्रोधित स्वर में – आप राजनीति में आने की सोच रहे हैं , मेरे रहते आप ऐसा कैसे कर सकते हैं , क्या मैं आपके हितों का ख़्याल नहीं रख रहा ?
जबाब के बदले साले को गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद हुआ। साले का सारा गुस्सा पल भर में तिरोहित हो गया। साला उछल कर दूर जा खड़ा हुआ।
जीजा – राजनीति में न आऊं तो क्या करूं , तुम्हारी मूर्खताओं से पूरा परिवार परेशान है। अब हम लोगों को आकर ही सम्हालना पड़ेगा। दस एक साल हो गए पर तुम्हारे में कुछ भी इंप्रूवमेंट नहीं है।
साला दूर से ही – इस बार तो अच्छा चल रहा है। मैने सामने वाले की हालत खराब कर रखी है। इस बार तो मेरा बनना पक्का है।
जीजा दांत पीसते हुए – हालत तो मेरी खराब की है तुमने , कल मुझे ज़बाब देते नहीं बन रहा था।
साला और थोड़ा पीछे खिसक कर – क्यों क्या हुआ था ?
जीजा – पत्रकार आए थे , साथ मेरे हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति का लेखा जोखा लाए थे , पूछ रहे थे कि गुजारे लायक छोड़ बाकी की संपत्ति मैं कब बाटने वाला हूं। आपके साले साहेब की स्कीम है तो घर से ही उद्घाटन हो जाए।
साला – वह तो जनता को बहला फुसला कर वोट लेने के लिए कह रहा हूं , क्या जीजा ऐसा करना मुमकिन है क्या ?
तब तक नौकर एक ट्रे में इंपोर्टेड व्हिस्की और और दो खूबसूरत ग्लास और अन्य सामग्री लेकर पहुंचा।
जीजा – जो करना नहीं रहता है वह बकते क्यों हो ?
बात खत्म होते ही जीजा ने लपक कर एक गिलास उठाया और पूरी ताकत से साले को फेंक कर मारा। साला समय पर झुक न गया होता तो निश्चित रूप से बचा खुचा दिमाग भी डैमेज हो जाता।
जीजा ने निशान चूकता देख पुनः ग्लास उठाया किंतु तब तक साला अलादीन के चिराग के जिन की तरह गायब हो चुका था।
Kumar Kalhans