सारे गिले-शिकवे भुलाकर…
सारे गिले-शिकवे भुलाकर…
हम आपसी समन्वय करते हैं!
मिले अनुभव से मिल-बैठकर…
ख़ास कोई योजना तय करते हैं!
काॅंटे चुनकर व फूल बिछाकर…
साथ में यात्रा आनंदमय करते हैं!
सभी कदम में कदम मिलाकर…
मंज़िल तक का सफ़र तय करते हैं!
…. अजित कर्ण ✍️