सारी तल्ख़ियां गर हम ही से हों तो, बात ही क्या है,
सारी तल्ख़ियां गर हम ही से हों तो, बात ही क्या है,
बस रोज़ हमें आदाब लिखो और भूल जाया करो।
देखो बरसात जा रही है, मौसम सूखे-सूखे आएंगे,
गुजरती नशीली रिमझिम में, थोड़ा भीग लिया करो।
कल उतरा था चाँद, जमीं पे अमावस की रात,बोला,
न महबूब को चांद, न चांद को महबूब कहा करो।
ये ख़ुदगर्ज़ बज़्म है, सिलसिला यों ही चलता रहेगा,
लुत्फ़ थोड़ा मज़ाजी, थोड़ा रूहानी उठाते रहा करो।
लोग बड़े तंगदिल हैं, तुम मासूमियत से बाज़ आओ,
अश्क़ ख़ुद के सिवा, किसी के वास्ते न गंवाया करो।
मेरे बारे में जो भी ख़्याल हो तुम्हारा, अच्छा या बुरा,
उसे कभी-कभार, पलटकर भी देख कर लिया करो।