” सारंगी के सुर लागे हैँ ” !!
अँखियों में फिर आस जगी है ,
हँसकर मनवा करे ठगी है !
आस ले रही आज हिलोरें ,
हलचल जानो खूब मची है !
जागी पीर सुरों से ऐसी ,
सपनों के फेरे लागे हैं !!
टूट टूट कर बिखरे हैं हम ,
उम्मीदों पर ठहरे हैं हम !
मौसम की गलबहियों से क्या ,
घाव मिले जो सहते हैं हम !
तेरे आने के सन्देशे ,
खुशियों के भी पर लागे हैं !!
तेरा आना महकी कलियां ,
सूनी ना लागे हैं गलियां !
गमक गये हैं सारे अरमां ,
खूब मनेगी अब रंगरलियां !
करवट बदले भाव चितेरे ,
लगते पलपल अब जागे हैं !!
बृज व्यास