#सामयिक_ग़ज़ल
#सामयिक_ग़ज़ल
■ बदचलन अदबी रिसाले हो गए
【प्रणय प्रभात】
■ आपके घर में उजाले हो गए।
हम चिताओं के हवाले हो गए।।
■ सुर्खियों में झूठ ने पाई जगहा।
बदचलन अदबी रिसाले हो गए।।
■ पुतलियां देशी, विदेशी उंगलियां।
अब ये मंज़र देखे-भाले हो गए।।
■ कल तलक कपड़ा न था तन पे हुजूर!
आप कब से जेब वाले हो गए?
■ दोस्तों की मेहरबानी उठ गई।
और हम तक़दीर वाले हो गए।।
■ हम वफ़ा की राह चल के आए हैं।
देखिए, पांवों में छाले हो गए।।
■ मिल गया विरसे में अब्बू का क़लाम।
छोकरे दीवान वाले हो गए।।
■ नेवलों-सांपों में यारी हो गई।
हम-पियाले हम-निवाले हो गए।।
■ चाबुकों की चोट के आदी हुए।
लोग अब सच में निराले हो गए।।
■प्रणय प्रभात■
संपादक / न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)