*सामयिक मुक्तक*
#मुक्तक-
■ ख़तरा जाफ़र और जयचंद।
[प्रणय प्रभात]
“खोल कर सीना सदा, रखते हैं आगे मौत के,
दुश्मनों के वार से फ़ौजी को ना भरमाइये।
पीठ पे अपनों की गोली से जो रक्षा कर सके,
अब जवानों के लिए उल्टे कवच बनवाइये।।”
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#कथ्य-
हमारे जवानों को ख़तरा सीमा-पार से कम, घर की रार से ज़्यादा है। सरहद के बाहर कुएं हैं और भीतर खाइयां।।
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-सम्पादक-
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