*सामने वो आन खड़ी*
सामने वो आन खड़ी
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सामने वो आन खड़ी,
नजरों से जा नजर लड़ी।
छा गया इक अजब नशा,
सूली पर थी जान पड़ी।
मन चंचल सा मचल उठा,
प्यारी थी वो मिलन घड़ी।
फूलों सा चेहरा था खिला,
हीरे मोतियों से थी जड़ी।
मनसीरत मुरादें पुरी हुई,
खुशियाँ मिली कई धड़ी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)