साथ छोड सकता नही
हाथ पकडु जो किसी का ,छोड सकता नही
शांत तो मैं समुद्र जैसा, बाढ़ फिर मैं सकता नही।।
हे प्रिय तू तो था अंग मेरा,
इसलिए क्या फिर तुझे मैं त्याग सकता नही।
क्या तुझे मैं त्याग सकता नही….
आग हो अंगार जो साथ तेरे मैं खड़ा था।
धर्म हो या अधर्म हर राह पर मैं अड़ा था।
कार्य तेरा जो भी हो,लगता था सब सही
इसलिए क्या फिर मैं तुझे त्याग सकता नही ……
कर्ण के कुंडल सा था सीने में तू जड़ा हुआ।
आज भी हृदय के किसी कोने में पड़ा हुआ।
लाख निकाले तू निकलता नही,
इसलिए क्या फिर मैं तुझे त्याग सकता नही………
दुख तुझे होगा बहुत, दिया मैंने जानता हूं।
हर ग़लतियो की गलती की मैंने मानता हूं।
मिलन हो रुदन हो ये चाहता नही,
इसलिए क्या फिर मैं तुझे त्याग सकता नही ..