साथी छंद
साथी छंद
मुक्तामणि छंद का सम चरण + दोहे का सम चरण =साथी छंद
विधान – 23 मात्रा, 12 -11
विषम चरण में यति वाचक भार 22गा गा , सम चरण 21( ताल
कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
(इस छंद का उद्भव आदरणीय श्री आर के प्रजापति ” साथी” जी द्वारा किया गया है , यह गेय छंद है ,
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
साथी छंद –
मतलब की जो रखते , यारी मन में ठान |
मार कटारी छाती , खुद ही करें निशान |
कौन यहाँ समझाता , मत बनना नादान |
उपकारी इस जग में , माने सब भगवान ||
ऐसी कविता बोलें, कवि कुल का जो धर्म |
संचार. रहे साहस , उदित. रहे शुभ कर्म |
गायब रहे निरासा , बिखरे तट मुस्कान |
प्रेम. भाव का दर्शन , बोले हिन्दुस्तान |
~~~~~~~~~~~~~~~~~
साथी छंद में मुक्तक
जब भी जिसने ठानी , हल. होते हालात |
एक दिवस भी दुश्मन , आकर करता बात |
नेक नियत भी रहती , जिसकी दिल से साफ –
बाल न बांका होता , हार मानती घात |
कुछ लकीर पर चलकर , बनते रहे फकीर |
हम लकीर से हटकर , देखे नई. नजीर |
सृजन नहीं है पानी , दें बर्तन में डाल ~
वेग पवन हम माने , मन को रखे कबीर |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
साथी छंद गीतिका
सुंदर लगती छाया , पेड़ मिले फलदार |
ऐसा लगता यारो , यहाँ खिले परिवार ||
नहीं उठाना पत्थर , देना उनको फेंक ,
बदले में वह देगें , मिले- जुले उपहार |
कभी न दिखते मानी, सब. सहते आघात ,
हर अवसर पर मिलते, सदा ढले तैयार ||
पेड़ लगाना यारो , मौसम है बरसात ,
पुण्य कमाकर जाओ , ईश तले भवपार |
पेड़ सदा उपयोगी , कुछ तो हरते रोग ,
हितकारी है सेवन , खूब. फले रसधार |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
साथी छंद गीत
तोता बने न ज्ञानी , खूब लगा लो जोर | मुखडा
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
नहीं बुरीं हैं बातें , अपना ही हित देख | अंतरा
चलें किसी पर लातें , ऐसा भी मत लेख ||
कर देती बदनामी , जहाँ अनीति एक |
मत करना नादानी , अपना छोड़ विवेक ||
बोल वचन है प्यारे , देखो अपनी ओर |पूरक
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
कटु वाणी भी जग में , खो देती सम्मान |अंतरा
घाव आपके भरते , रहते चोट निशान ||
एक. परीक्षा जानो , संकट का हो दौर |
खुद. निपटाना प्यारे , नहीं खोजना और ||
संकट सब टल जाते, मन का नाचे मोर |पूरक
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
सुंदर लगती छाया , पेड़ जहाँ फलदार |अंतरा
ऐसा लगता यारो , जैसे हो परिवार ||
नहीं उठाना पत्थर , कर. देना उपकार |
बदले में तब देगे , पेड़ कई उपहार ||
करो कर्म हितकारी , और सुहानी भोर |पूरक
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
=========================
समस्त उदाहरण स्वरचित व मौलिक
-©सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य ,दर्शन शास्त्र