दोहरा छंद, विधान ( सउदाहरण ) एवं विधाएँ
दोहरा छंद मात्रिक छंद (12 – 11 )
विधान – यह दोहा का रुपान्तर है , इसके विषम चरण की , यति चौकल (जगण छोड़कर) होती है , शेष विधान दोहा की तरह है , काव्याचार्य श्री रामदेव लाल विभोर जी लखनऊ नें , अपनी छंद विघान पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 116 पर इसका उल्लेख किया है व तुलसी कृत श्री रामचरितमानस मानस में प्रयुक्त दोहा ( दोहरा) क्रमांक 191 का उदाहरण दिया है , 👇
सुर समूह विनती करि , पहुँचे निज-निज धाम |
जग निवास प्रभु प्रकटे , अखिल लोक विश्राम ||
सुंदर कांड में भी दोहरा छंद 12-11 के उदाहरण है
दोहरा छंद 12-11 ,
यति बाचक भार गा गा , चरणांत ताल
कमी देखते जाकर , क्यो उठती है भाप |
कर्म करें वह खोटे , फिर भी अच्छी छाप ||
शीशे का घर उनका , काम न फिर भी नेक |
लख अवसर दूजों पर , देते पत्थर फेक ||
टाँग अड़ाकर अपनी , करते बेतुक बात |
जब भी सूरज उगता , कहते आई रात ||
हाल. देखते उनका , फैलाते हैं क्लेश |
मिले कर्म से उनकी , लघुता का संदेश ||
जन मानस को लूटें , बनकर दाताराम |
देखा हमने जग में , फिर भी उनका नाम ||
इनसे बचकर रहना ,यह ‘सुभाष’ का शोध |
नाम जानिए नेता ,पग – पग पर अवरोध ||
दिल के अंदर रहता , कोई मन का मीत |
हार सदा स्वीकारी , देकर उसको जीत ||
मीत हमारी मानो , जब वह. करती याद. |
हिचकी मुझको आए. , दिल होता नौशाद ||
{नौशाद = खुश )
प्रीति हमारी उसकी , सौ जन्मों का साथ |
दिल से बंधन रहता , रहूँ थामता हाथ ||
उसे देखकर हसरत , मन में करती ताल |
मेरी उसकी मैत्री , देती सदा मिशाल ||
खुुद. में है परिभाषा , करे प्रेम. प्रतिदान |
हरदम उसके रहती , चेहरे पर. मुस्कान ||
लगती है दीवानी , गढ़े नए. आयाम |
रोम – रोम. से हर्षित , लेती मेरा नाम ||
सुभाष सिंघई
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दोहरा छंद मुक्तक
नमन शारदे मैया, आया हूँ दरबार |
शरणागत. हूँ तेरी , माता जरा निहार ||
कृपा सिंधु तू मैया , विद्या की तू गंग ~
कवि कुल की तू रक्षक ,सुत पर कर उपकार |
धन्य कलम हो मेरी, हटे तिमिर अज्ञान |
हंस वाहिनी मैया, रखना मेरा मान |
धवल बस्त्र है धारित , मुख पर रहता ओज ~
सुर नर मुनि सब ज्ञानी करें खूब. गुणगान |
तम का घेरा दिखता , सब कुछ डावाँडोल |
मिले रोशनी बाहर , द्वार हृदय के खोल ||
लगा रखी है कुंडी , बैठा है चुपचाप ~
नहीं जानता कीमत , जीवन है अनमोल |
मेरे नेता देते , जनता को सौगात ||
जुमलों की बौछारें , वादों की बरसात |
रहे भींगती जनता , करती जय -जयकार ~
वादे मीठे पाकर , सोती है दिन -रात |
बिना विचारे चलते ,यदि शतरंज बिसात |
मिले सामने सीधी , आकर पूरी मात |
कह सुभाष लाचारी , आदत. हमने डाल –
फिर भी चुप रहकर , सहते है आघात |
गंगा माँ को माने , जाने तारण हार |
फिर क्यो देते मैला , उसे सदा उपहार |
गंगा माँ भी कहती , मै हरती संताप –
डाल गंदगी कहते , मैया तुझसे प्यार |
गंगा माँ भी बोले , लेकर मेरा नाम |
खूब बनाते कागज , गायब होते दाम |
गंगा माँ अब कहती , विनती है सरकार ~
गंदे नाले रोको , हो यह पहले काम |
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दोहरा छंद गीतिका मात्रिक छंद (12 – 11 )
सुंदर लगती छाया , पेड़ मिले फलदार |
ऐसा लगता यारो , यहाँ खिले परिवार ||
नहीं उठाना पत्थर , देना उनको फेक ,
बदले में वह देगें , मिले- जुले उपहार |
पेड़ न दिखते मानी, सब. सहते आघात ,
हर अवसर पर मिलते, सदा ढले तैयार ||
पेड़ लगाना यारो , मौसम जब बरसात ,
पुण्य कमाकर जाओ , ईश तले भवपार |
पेड़ सदा उपयोगी , कुछ तो हरते रोग ,
हितकारी है सेवन , खूब. फले रसधार |
सुभाष सिंघई
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दोहरा छंद में अपदांत गीतिका , मुक्तामणि छंद का
सम चरण + दोहा का सम चरण 12 -11
रहे गाँव में गोरी , नदिया के उस पार |
चर्चा है सुंदरता , ले आई अवतार ||
चंद्र लगे मुख गोरी, उपमा खुद हैरान ,
पलक नयन है तीखे , लगे कटीली धार |
चढ़ी नाक पर नथनी , दिखलाती है मान ,
लगता सूरज को ही , रखे बनाकर यार |
सावन -भादों बरसे , चेहरे पर श्रम बूँद ,
हँसता कहता पानी , पाई है सुखसार |
केश लटाएं हिलती , लहराती है गात |
लगे सुमन की डाली , हिलती है सुख कार ||
होंठ कमल दल लगते, सुनो सुभाषा बोल ,
दंत चमकते देखा , जैसे हो गुलनार ||
सुभाष सिंघई
अपदांत गीतिका दोहरा छंद
बेमतलब के मसले , सभी जानते बात |
जो बनते है रोगी, भोंकेगें दिन रात ||
चार जमूरे गिनती , हो जाते है साथ,
खुद. ही ठेका देकर , बोलेगें ओकात |
ज्ञान भरा अधकचरा , गायब मिलता छोर ,
फिर भी मुख वाणी से , खोलेगें निज जात |
कौन किसे समझाता, और समझता हाल ,
हो जाते जब घा़यल , चोकेगें पा घात |
कहता बात सुभाषा , अजब-गजब दस्तूर ,
सच्चा पाकर ज्ञानी , खोजेगें अज्ञात |
रार. खार में पड़ते , छोड़े सभी उसूल,
करते रहते झंझट , दोड़ेगें ले मात |
सुभाष सिंघई
दोहरा छंद , गीतिका
समांत अता , पदांत हिंदुस्तान
नहीं यार अब खोजो , क्या करता ईमान |
छेद श्रमिक का गमछा , दिखता हिंदुस्तान ||
भूखों को समझाते , देश प्रेम की बात ,
बुझा हुआ है चूल्हा , जलता हिंदुस्तान |
भाषण थोपा सबको , दिया न कोई काम ,
बच्चे घर. में भूखे , मरता हिंदुस्तान.|
सचिवालय भी कहता , काबू में हालात ,
धोखा पूरा खाकर , पलता हिंदुस्तान |
मेहनतकश है बैठा , मिला न कोई काम ,
लगा सिफारिस लेबल , खपता हिंदुस्तान |
फटे नोट भी चलते , चिपका जिसमें टेप ,
कुछ. लोगों को टुकड़ा , लगता हिंदुस्तान |
करें एकता बातें , शामिल जहाँ सुभाष ,
ईद दशहरा दंगे , डरता हिंदुस्तान |
सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म०प्र०
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दोहरा छंद –
मतलब की जो रखते , यारी मन में ठान |
मार कटारी छाती , खुद ही करें निशान |
कौन यहाँ समझाता , मत बनना नादान |
उपकारी इस जग में , माने सब भगवान ||
ऐसी कविता बोलें, कवि कुल का जो धर्म |
संचार. रहे साहस , उदित. रहे शुभ कर्म |
गायब रहे निरासा , बिखरे तट मुस्कान |
प्रेम. भाव का दर्शन , बोले हिन्दुस्तान |
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दोहरा छंद में मुक्तक
जब भी जिसने ठानी , हल. होते हालात |
एक दिवस भी दुश्मन , आकर करता बात |
नेक नियत भी रहती , जिसकी दिल से साफ –
बाल न बांका होता , हार मानती घात |
कुछ लकीर पर चलकर , बनते रहे फकीर |
हम लकीर से हटकर , देखे नई. नजीर |
सृजन नहीं है पानी , दें बर्तन में डाल ~
वेग पवन हम माने , मन को रखे कबीर |
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दोहरा छंद गीतिका
सुंदर लगती छाया , पेड़ मिले फलदार |
ऐसा लगता यारो , यहाँ खिले परिवार ||
नहीं उठाना पत्थर , देना उनको फेंक ,
बदले में वह देगें , मिले- जुले उपहार |
कभी न दिखते मानी, सब. सहते आघात ,
हर अवसर पर मिलते, सदा ढले तैयार ||
पेड़ लगाना यारो , मौसम है बरसात ,
पुण्य कमाकर जाओ , ईश तले भवपार |
पेड़ सदा उपयोगी , कुछ तो हरते रोग ,
हितकारी है सेवन , खूब. फले रसधार |
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दोहरा छंद गीत
तोता बने न ज्ञानी , खूब लगा लो जोर | मुखडा
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
नहीं बुरीं हैं बातें , अपना ही हित देख | अंतरा
चलें किसी पर लातें , ऐसा भी मत लेख ||
कर देती बदनामी , जहाँ अनीति एक |
मत करना नादानी , अपना छोड़ विवेक ||
बोल वचन है प्यारे , देखो अपनी ओर |पूरक
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
कटु वाणी भी जग में , खो देती सम्मान |अंतरा
घाव आपके भरते , रहते चोट निशान ||
एक. परीक्षा जानो , संकट का हो दौर |
खुद. निपटाना प्यारे , नहीं खोजना और ||
संकट सब टल जाते, मन का नाचे मोर |पूरक
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
सुंदर लगती छाया , पेड़ जहाँ फलदार |अंतरा
ऐसा लगता यारो , जैसे हो परिवार ||
नहीं उठाना पत्थर , कर. देना उपकार |
बदले में तब देगे , पेड़ कई उपहार ||
करो कर्म हितकारी , और सुहानी भोर |पूरक
कभी न बरसे पानी , करने से कुछ शोर ||टेक
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समस्त उदाहरण स्वरचित व मौलिक
-©सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य ,दर्शन शास्त्र