सात समंदर पार
वो बादलों के ऊपर
उड़ता जहाज़
तुम्हें मुझसे बहुत दूर
सात समंदर पार ले गया
जैसे मेरे अंदर कुछ टूट कर
बिखरता गया
हाथों से कुछ छूटता गया
वो जहाज़ जैसे
सात समंदर पार करता रहा
खारे पानी के सात समंदर
मेरी आँखों में समा गए
अब हर रोज इन आँखों में
ज्वार भाटा आता है
समंदर उफन उफन कर
सारे शहर को डुबाने लगता है
वो बादलों के ऊपर
उड़ता जहाज़
मेरी आँखों में
ज्वार भाटा लाता है
वो बादलों के ऊपर
उड़ता जहाज़
तुम्हें मुझसे बहुत दूर
सात समंदर पार ले गया…
©️कंचन”अद्वैता”