सात दोहे
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जीवन पथ पर जो मिले , “जय” जीवन हो जाय।
साथ-साथ, पग-पग चले , जीवनसाथी कहाय ।। 1।।
एक कृति, कई रूप “जय”, जीवनसाथी निभाय।
संस्कार, जीवन-मरण सब , रीति रिवाज चलाय ।।2।।
माता-पिता, भाई-बहन, छोड़ साथ “जय” जाय ।
सुख-दुख, तक अंतिम घड़ी , साथी छोड़ न जाय ।।3।।
एक धुरी, दो पहिए “जय”, जीवन एक चलाय ।
उतार-चढ़ाव जिवन सब , चलत निरंतर जाय ।। 4 ।।
दो शरीर एक जान “जय” , सातहि वचन निभाय ।
सातों जनम पाऊँ कहे , जीवन साथी कहाय ।। 5 ।।
अंख हाथ सम साथी है , रिश्ता अमर कहा ।
चोट हत अंख रोय “जय”, आंसू हाथ छिपाय ।। 6।।
आधा-आधा अंग अर्ध , नारेश्वर हो जाय ।
साथी का यह रूप “जय”, जग में पूजा जाय ।। 7 ।।
संतोष बरमैया “जय”
कुरई, सिवनी, म.प्र.
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