** सात दिन की माँ **
यह कथा सत्य घटना पर आधारित है| गोपनीयता बनाए रखने के लिए पात्रों के नाम और स्थान बदल दिए गए हैं|
*कहते हैं, ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती और ईश्वर जो करता है भले के लिए ही करता है| यह कहानी उस माँ की है जिसे मातृत्व का सुख सिर्फ सात दिन के लिए ही प्राप्त हुआ| नीरा राजस्थान के एक छोटे से कस्बे बूंदी में रहती है| नीरा के परिवार में उसकी बुआ और बहन मातृत्व सुख से वंचित हैं जिन्हें अपनी कोई संतान नहीं है| नीरा की शादी को आज तेरह वर्ष बीत चुके हैं उसके पास भी अपनी कोई संतान नहीं है उसे कोई माँ कहने वाला नहीं है| नीरा और उसके पति साहिल बच्चे को गोद लेने की सोचते हैं| वह अनाथ आश्रम जाते हैं मगर वहाँ से निराश वापस आते हैं| निराशा के चलते-चलते दोनों बहुत टूट जाते हैं| लोगों के ताने, घरवालों का विपरीत व्यवहार उनको आघात पहुँचाता है|
*एक दिन उन्हें किसी रिश्तेदार के संपर्क से पता चलता है कि उनके किसी सगे-संबंधी ने चौथी बेटी को जन्म दिया है और वह उसे गोद देना चाहते हैं| सूचना प्राप्त होते ही दोनों पति-पत्नी उनके घर पहुँचते हैं| बच्ची को देखते ही दोनों पति-पत्नी के मन में ममता और प्यार उमड़ पड़ता है| उन्हें लगता है कि शायद भगवान को यही मंजूर है कि वह जन्मदाता न होकर पालनकर्ता कहलाएँ| ईश्वर की सौगात उन्हें इस रूप में प्राप्त होगी उन्हें अंदाजा भी नहीं था|दोनों बहुत खुश हैं बच्ची के मुख के तेज को देखकर दोनों उसे गोद में लेने के लिए उत्सुक उसके माता-पिता से बातचीत करने के पश्चात नीरा और साहिल बच्ची को अपने घर ले आते हैं|
*दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं है नीरा और साहिल बेटी के लिए खूब खरीदारी करते हैं खिलौने, कपड़े, दुनिया भर की वस्तुएँ बच्ची के लिए एक ही दिन में खरीद ली जाती हैं| दोनों बहुत खुश हैं| बच्ची के घर आने से घर के सभी सदस्य भी खुश हैं सास-ससुर देवर देवरानी सभी के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है जो पलभर भी उनके साथ बातचीत नहीं करते थे,जली-कटी सुनाते थे आज वह नीरा के पास बैठे हैं उस की बच्ची को प्यार दुलार दे रहे हैं| नीरा और साहिल बहुत खुश है मानो उनको तेरह साल बाद कोई चलता खिलौना मिल गया है जिसके साथ वह खेल सकते हैं बात कर सकते हैं|
*ऐसा खिलौना जो उनकी आवाज सुनकर प्रतिक्रिया दर्शाता है| ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे दोनों को खुशी का खजाना मिल गया है|मगर शायद ईश्वर को उनकी यह खुशी ज्यादा समय तक बर्दाश्त नहीं होती| बच्ची को घर लाने के एक सप्ताह पश्चात अचानक बच्ची के जन्म देने वाले माता-पिता उनके दरवाजे पर खड़े होते हैं|रात का समय है, वह अपनी बच्ची को वापस ले जाने के लिए आए हैं| दोनों नीरा और साहिल से कहते हैं कि वह अपनी बच्ची को गोद नहीं देना चाहते| वह उसे वापस ले जाने आए हैं| नीरा और साहिल के पैरों तले की जमीन निकल जाती है|उनकी ममता का कुंद्र हनन ऐसे होगा उन्होंने अनुमान भी नहीं लगाया था| दोनों की सारी अभिलाषाएँ नष्ट हो जाती हैं| बच्ची के मुख से मम्मी और पापा सुनने की इच्छा शायद अब कभी पूरी नहीं हो पाएगी दोनों शुब्द्घ खड़े थे और बच्ची के असली माता-पिता अपनी बेटी को उठा कर ले जा रहे थे| नीरा और साहिल कुछ नहीं कर पाए| ईश्वर ने उन्हें वासुदेव और जानकी बनने का मौका तो दिया ही नहीं था साथ ही नंद और यशोदा बनने के अवसर को भी छीन लिया| सब एक सपना प्रतीत हो रहा था और सात दिन की माँ की ममता चीख-चीखकर अपनी ममता का गला घुटते देख रही थी| शायद तभी कहते हैं ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता|जितना हम वहाँ से लिखवाकर आए हैं उतना ही हमें यहाँ प्राप्त होता है|
*मैं किसी अंधविश्वास की बात नहीं कर रही हूं बल्कि उस लीलाधारी की लीला की बात कर रही हूँ जिसकी डोर स्वम् उसी के हाथ में है हम तो मात्र कठपुतलियाँ है जो उसकी डोर के हिलने से नाचती हैं| आज नीरा और साहिल उस बच्ची को लक्ष्मी स्वरूपा मानते हैं| उसके कदम इतने शुभ हुए कि आज नीरा और साहिल स्वयं के मकान में है नीरा बच्चों को पढ़ाने का कार्य करती है| साहिल भी अपनी नौकरी से संतुष्ट है| रोज़ बच्ची को याद करते हैं और भगवान की मर्जी समझ कर संतुष्ट हो जाते हैं| मीरा की चचेरी बहन को भी मातृत्व सुख नहीं प्राप्त हुआ था उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी| उसने अनाथ आश्रम से एक लड़का गोद लिया था और आज वह लड़का बारह साल का है| नीरा की बुआ आज सत्तर साल की हैं जो आज भी संतान सुख से वंचित हैं| नीरा सात दिन की माँ बन कर संतुष्ट है, अपने आप को सौभाग्यशाली समझती है और भगवान की मर्जी के आगे नतमस्तक है| आज वह बच्ची एक साल की हो गई है| नीरा और साहिल के लिए सात दिन जीवन के सुनहरे दिन रहेंगे जो उनकी यादों में मृत्युपर्यंत उनके साथ रहेंगे|