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आप किसकी मानते हो,
शायद, अपनी, ना ..ना..ना
ये तो बहुत बडी जानकारी की बात की बात है,
शायद, दूसरों की, हाँ यह आम बात है.
ऐसा आसान भी, पल्लू झाड सकते है.
फलाँ ने कहा था,
या आप्तवचन मानकर, महापुरुष/विद्वानों की या अपने तथाकथित धर्म या उपदेशक परम्परा रीति-रिवाजों की.
आपमें रहस्य के पर्दे हटाने की क्षमता है, तो आप खुद को अकेले पायेंगे,
यह खुद में एक दंश है, जिसके साथ आगे बढ़ना, उद्देश्य स्थापित करके ही संभव है,
एक ऐसी ही पैरवी करने की आज जरूरत है, जिससे समाज से भेदभाव, हीन-भावना,दरिद्रता, जातीय भेदभाव मिट सके.
आधार कार्ड, आपकी पहचान.
परीक्षाओं और क्षमता आकलन में प्रयोग हो,
जातीय,धार्मिक विज्ञापन बंद हो !
Mahender Singh