“साजन लगा ना गुलाल”
“साजन लगा ना गुलाल”
गोरे गालों पे साजन लगा ना गुलाल।
मुझसे पूछेंगी सखियाँ हुआ क्यों ये हाल।
तेरा हँसना हँसाना सताता मुझे।
छोड़कर दूर जाना रुलाता मुझे।
साँसें मेरी रुके आग तन में लगे।
ख्वाब सोए थे वे फिर मचलने लगे।
अब तो भँवरे भी…२ मुझसे करें ये सवाल।…1
इस लरजती हवा से महकता चमन।
क्यों ये मन को लगी यार तेरी लगन।
आकर मुझको बता दे जरा तू सनम।
तुम पे कुर्बान मेरे हजारों जनम।
कोई पूछे ना….२ कर कोई ऐसा कमाल।…2
कैसे कह दूँ हुआ क्या मेरे साथ में।
मेरा दिल था मेरी जान के हाथ में।
दूर रह ना सकूँगी तुम्हे छोड़कर।
तुम न जाना कभी दूर मुँह मोड़कर।
कैसे मस्ती में….२ झूमें मचाएँ धमाल।….3
अब तो छोड़ो हमारी कलाई पिया।
मैने तन मन ये अपना तुम्हे दे दिया।
मेरी आँखों में सूरत बसी यार की।
छोड़ जिद को कसम है तुम्हे प्यार की।
लाज आती है…. २ कैसे दिखाऊँगी गाल।…4
सबको होली मुबारक नए साल की।
‘रुद्र’ देता बधाई नए चाल की।
आओ मिलकर मनायें सभी प्यार से।
खेलें होली रंगीली सदा यार से।
खेल मस्ती से…. २ खेलें करें ना मलाल।…5
गोरे गालों पे साजन लगा ना गुलाल।
मुझसे पूछेंगी सखियाँ हुआ क्यों ये हाल।
द्वारा:-🖋️🖋️
लक्ष्मीकान्त शर्मा ‘रुद्र’
(स्व-रचित / मौलिक)
देवली, विराटनगर जयपुर
दिनाँक : 05/03/2023